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आध्यात्मिक सम्पत्ति को कोई नहीं छीन सकता

locationबैंगलोरPublished: Jul 18, 2019 07:30:16 pm

Submitted by:

Rajendra Vyas

आचार्य महाश्रमण के प्रवचन

pravachan

आध्यात्मिक सम्पत्ति को कोई नहीं छीन सकता

बेंगलूरु. जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने बुधवार को कहा कि भगवान ऋषभ वर्तमान अवसर्पिणी काल के आदि (प्रथम) तीर्थंकर थे। उनकी स्तुति के लिए भक्तामर स्तोत्र भी रचित है। उन्होंने गृहस्थ अवस्था का जीवन भी जीया और लोगों की लौकिक भलाई भी की।
उन्होंने मानव जाति को दैनिक कार्यों का ज्ञान प्रदान किया। खेती, रहन-सहन, घर आदि के नियम बताए। उनके मन में वैराग्य जगा और वे साधना कर तीर्थंकर बन गए। राज सम्पत्ति के विवाद को लेकर उनके पास पहुंचे 98 पुत्रों को उन्होंने सम्बोधि प्राप्त करने की प्रेरणा देते हुए कहा कि भौतिक धन तो कोई छीन भी सकता है, लेकिन सम्बोधि, आध्यात्मिक सम्पत्ति को कोई नहीं छीन सकता। भगवान ऋषभ ने जो सम्बोधि प्रदान की, वह समस्त मानव जाति के लिए है। आचार्य महाप्रज्ञ के संस्कृत भाषा में रचित ग्रन्थ के माध्यम से व्याख्यान का प्रारम्भ करते हुए आचार्य महाश्रमण ने कहा कि इसके प्रथम श्लोक में मंगलाचरण किया गया है और पंच परमेष्ठी को प्रथम स्थान दिया गया है। जो अहिंसक होते हैं, वे तीन लोकों के त्राता बन जाते हैं।
उन्होंने कहा कि भगवान महावीर तीन लोक के प्राणियों को पाप व दु:ख से बचाने के लिए त्राता बन गए। भगवान महावीर 24वें तीर्थंकर थे। तीर्थंकर से बड़ा प्रवक्ता भला कौन हो सकता है? उनका प्रारंभिक नाम वर्धमान था। ज्ञान, दर्शन में उनकी वर्धमानता थी। मंगल प्रवचन से पूर्व बेंगलूरु चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष मूलचंद नाहर, महामंत्री दीपचंद नाहर, प्रकाश लोढ़ा ने पावस प्रवास व फड़द लोकार्पित की तो आचार्य ने पुस्तक के संदर्भ में लोगों को प्रेरणा देते हुए आशीर्वाद प्रदान किया। प्रवचन के बाद जसराज बुरड़ ने हर्षाभिव्यक्ति दी।
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