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वादों में उलझा ‘विकास’, जनता किससे करे आस!

locationबैंगलोरPublished: Dec 23, 2021 09:21:24 pm

Submitted by:

Jeevendra Jha

उत्तर कर्नाटक को तारणहार का इंतजार, सिंचाई परियोजनाओं का क्रियान्वयन चुनौती
राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी से विकास योजनाओं पर फोकस नहीं

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कुमार जीवेंद्र झा
बेंगलूरु. विकास के पैमाने पर कर्नाटक अग्रणी राज्यों में शुमार होता है मगर प्रदेश का एक हिस्सा ऐसा भी है जहां आज भी विकास की किरणें नहीं पहुंच पाई हैं। पिछले कई दशकों से सत्ता में आने वाली हर पार्टी की सरकार उत्तर कर्नाटक के विकास के सपनों को पूरा करने के वादे करती है मगर जमीनी हालात में कोई बदलाव नहीं आता। विकास योजनाएं परवान नहीं चढ़ पा रही हैं। कभी धन या संसाधनों की कमी तो कभी प्रशासनिक शिथिलता इस क्षेत्र के विकास में अवरोधक बन जाता है। राजनीतिक तौर पर काफी प्रभावी होने के बावजूद उत्तर कर्नाटक विकास के दौड़ में पिछड़ा हुआ है। अधिक गर्मी और पानी के संकट से जूझने वाले इस इलाके में सिंचाई परियोजनाएं भी दशकों से लंबित हैं। औद्योगिक विकास भी ज्यादा नहीं हो पाया है। क्षेत्रीय असंतुलन दूर करने के लिए नंजुंडप्पा समिति की सिफारिशें भी सही से लागू नहीं हो पाई। बेलगावी में सुवर्ण विधानसौधा के तौर पर ‘सत्ता का केंद्रÓ तो मिल गया मगर विकास के लिए इस क्षेत्र को ‘तारणहारÓ का इंतजार है।
विशेष दर्जा मगर विकास दूर
उत्तर कर्नाटक में कल्याण-कर्नाटक और कित्तूर-कर्नाटक के 13 जिले आते हैं। कल्याण-कर्नाटक क्षेत्र को संविधान के अनुच्छेद 371 (जे) के तहत विशेष दर्जा भी मिला है। लेकिन, जमीनी तस्वीर वैसी ही है। इलाके के लिए आवंटित धन खर्च नहीं हो पा रहा है तो विकास कार्यों को अमलीजामा पहनाने के लिए गठित बोर्ड भी कर्मचारियों व संसाधनों की कमी से जूझ रहा है। कल्याण-कर्नाटक के लिए सरकार हर साल 1500 करोड़ रुपए जारी करती है जो भी पूरा खर्च नहीं हो पाता है। हाल ही में मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने अगले बजट में इसे बढ़ाकर 3 हजार करोड़ रुपए करने का वादा किया है।
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सीएम का आदेश नहीं पकड़ रहा गति
एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली पिछली गठबंधन सरकार ने उत्तर कर्नाटक के विभिन्न जिलों और सुवर्ण विधानसौधा में कई सरकारी उपक्रमों, निगमों और निदेशालयों के कार्यालय को स्थानांतरित करने के निर्देश दिए थे। इस साल अगस्त में बोम्मई ने भी सात निदेशालयों को उत्तर कर्नाटक में स्थानांतरित करने के निर्देश दिए थे। मगर अभी इसकी प्रक्रिया ही चल रही है। हालांकि, बेलगावी जिला प्रशासन ने कुछ स्थानीय सरकारी कार्यालयों को सुवर्ण विधानसौधा में स्थानांतरित कर दिया है।
चर्चा की रस्म अदायगी
डेढ़ दशक पहले महाराष्ट्र के साथ सीमा विवाद को लेकर सियासी खींचतान के बीच वर्ष 2006 में पहली बार बेलगावी में विधानमंडल का अधिवेशन हुआ था। इसका एक मकसद उत्तर कर्नाटक के विकास को भी महत्ता देना था। लेकिन, उत्तर कर्नाटक में होने वाले अधिवेशन में भी क्षेत्र की समस्याओं पर सिर्फ चर्चा की रस्म अदायगी होती है। इस बार भी अधिवेशन में विधानमंडल के दोनों सदनों में इस मसले पर चर्चा हुई मगर मांगों और आश्वासनों तक ही बातें सीमित रही।
सिर्फ आदेश समाधान नहीं
सुवर्ण विधानसौधा या उत्तर कर्नाटक के जिलों में सरकारी दफ्तरों के स्थानांतरित नहीं हो पाने की वजह प्रशासनिक से ज्यादा राजनीतिक है। राजनीतिज्ञ सत्ता का केंद्र बेंगलूरु को बनाए रखना चाहते हैं जहां विभागों के प्रमुख अधिकारी से लेकर पूरा अमला मौजूद हो। इसके अलावा कार्यालयों के स्थानांतरित नहीं हो पाने में कई व्यवहारिक समस्याएं भी हैं। इसके लिए प्रशासनिक व्यवस्था के साथ नियमों में भी बदलाव करना होगा।

नेता चाहें तो बने बात
राजनीतिक विश्लेषकों कहना है कि राज्य की राजनीति में इस क्षेत्र की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है। लेकिन, राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण विकास योजनाओं पर ज्यादा फोकस नहीं हो पाता है। इस क्षेत्र में लंबित ऊपरी कृष्णा, महादयी आदि सिंचाई परियोजना के लिए बड़े पैमाने पर धन के आवंटन के साथ ही विभिन्न स्तरों पर लंबित नियामकीय मंजूरी भी समस्या बनी हुई है।
सरकार दिखाए इच्छाशक्ति
सरकार अगर सरकार इच्छा शक्ति दिखाए तो यह काम डेढ़ साल में ही पूरा हो सकता है। बस सरकार को धन का इंतजाम करना है।
एसआर पाटिल, नेता प्रतिपक्ष, विधान परिषद
अपने संसाधनों से इंतजाम करे सरकार
सरकार को अपने संसाधनों से परियोजना को पूरा करने के लिए कदम उठाना चाहिए। क्षेत्र के विकास के लिए सिंचाई योजनाओं का पूरा होना जरूरी है।
एम बी पाटिल, पूर्व मंत्री
ढांचागत विकास पर हो फोकस
उत्तर कर्नाटक के विकास और रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए दीर्घकालिक योजना बनाकर काम करना होगा। जल परियोजनाओं के साथ सड़कें और संसाधन उपलब्ध होंगे तभी निवेशक भी आकर्षित होंगे।
एएस पाटिल, लघु उद्यमी
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