भोग सामग्री का मिलना, सुख साधन, देवलोक सरीखी समृद्धि मिलना और अनुकूल रिश्ते नाते मिलना यह कोई बड़ी बात नहीं है, परंतु एक मात्र धर्म का मिलना दुर्लभ है। चक्की में पिसने से वह बच जाता है जो धर्म रूपी कील का सहारा ले लेता है। धर्म रूपी द्वीप के आश्रय लेने से डूबने से बच सकते हैं।
मुनि ने कहा कि अहिंसा संयम तप रूपी धर्म को पाकर मुक्ति की चाह होनी चाहिए न कि संसार के बंधनों की। प्राणी धर्म तो करता है लेकिन इच्छा संसार की करता है। धर्म करने से सभी सांसारिक सुख स्वयं ही उपलब्ध हो जाते हैं परंतु धर्म से सांसारिक बंधनों की कामना करना सही नहीं। धर्म डूबने के लिए नहीं पार होने के लिए है। संघ के प्रचार-प्रसार चेयरमैन प्रेमकुमार कोठारी ने बताया कि मुनि द्वारा मुनि सुमति प्रकाश के 82 वां जन्मोत्सव पर आयंबिल करने की प्रेरणा दी गई। संचालन संघ मंत्री मनोहरलाल बंब ने किया।