दपरे ने यह मांग वर्ष-2012 में रखी लेकिन भूमि हस्तांंतरण का मामला अब तक फाइलों में दबा है। पिछले वर्ष-2017 में राज्य सरकार ने रेलवे से उपनगरीय रेल परियोजना के लिए एक करार किया था जिसके तहत मेमू ट्रेनों के रखरखाव के लिए बाणसवाड़ी में जमीन उपलब्ध कराई जानी है। बाणसवाड़ी में एनजीइएफ की 40 एकड़ जमीन रेलवे को दी जानी है जहां रखरखाव एवं मरम्मत शेड बनेगा लेकिन एक वर्ष बीतने के बाद भी भूमि हस्तांंतरण का काम अब तक नहीं हुआ है।
दपरे के अधिकारियों का कहना है कि दोनों जगहों पर भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया पर राज्य सरकार ने लम्बे अरसे से कोई वार्ता नहीं की है।
सीमित संसाधनों के बीच रेलवे करीब 100 उपनरीय रेलों का परिचालन कर रही है लेकिन अगर अब इनकी संख्या बढ़ाई जाती है तो इससे लंबी दूरी की ट्रेनों के नियमित परिचालन पर असर होगा। इसलिए उपनगरीय रेल सेवा को बेहतर तरीके से विकसित करने के लिए ढांचागत सुविधाओं को उन्नत करने की जरूरत है। हालांकि भूमि अधिग्रहण नहीं होने से यह परियोजना के भविष्य पर संशय के बादल घिर आए हैं।
सीमित संसाधनों के बीच रेलवे करीब 100 उपनरीय रेलों का परिचालन कर रही है लेकिन अगर अब इनकी संख्या बढ़ाई जाती है तो इससे लंबी दूरी की ट्रेनों के नियमित परिचालन पर असर होगा। इसलिए उपनगरीय रेल सेवा को बेहतर तरीके से विकसित करने के लिए ढांचागत सुविधाओं को उन्नत करने की जरूरत है। हालांकि भूमि अधिग्रहण नहीं होने से यह परियोजना के भविष्य पर संशय के बादल घिर आए हैं।
एनजीइएफ की भूमि पर भी फंसा पेंच
सरकार ने रेलवे को बताया कि एनजीइएफ भूमि का अधिग्रहण भी फिलहाल संभव नहीं है क्योंकि इसमें एक जर्मन कंपनी की 10 फीसदी हिस्सेदारी है। वहीं इस परियोजना के लिए केंद्र ने 29.5 करोड़ रूपए मंजूर किए थे, इसके बावजूद रेलवे को अब तक जमीन नहीं मिली है। सरकार ने अब रेलवे को कहा है कि वह व्हाइटफील्ड में वैकल्पिक भूमि की तलाश करे।
सरकार ने रेलवे को बताया कि एनजीइएफ भूमि का अधिग्रहण भी फिलहाल संभव नहीं है क्योंकि इसमें एक जर्मन कंपनी की 10 फीसदी हिस्सेदारी है। वहीं इस परियोजना के लिए केंद्र ने 29.5 करोड़ रूपए मंजूर किए थे, इसके बावजूद रेलवे को अब तक जमीन नहीं मिली है। सरकार ने अब रेलवे को कहा है कि वह व्हाइटफील्ड में वैकल्पिक भूमि की तलाश करे।
बिन्नी मिल भूमि अधिग्रहण व्यवहार्य नहीं
अगस्त-2017 में रेलवे और राज्य सरकार के प्रतिनिधियों के बीच हुई बैठक में कहा गया था कि राज्य सरकार ने रेलवे से कहा था कि बिन्नी मिल की भूमि का अधिग्रहण करना व्यवहार्य नहीं होगा। पहले इसके अधिग्रहण के लिए करीब 60 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत का उल्लेख किया गया था। वर्ष-2012 में सरकार ने अधिग्रहण की बात कही थी लेकिन पांच साल बाद इसे व्यवहार्य नहीं बताकर सरकार ने पूरी परियोजना को खटाई में डालने का काम कर दिया है। बिन्नी मिल की भूमि पर उपनगीय रेल के लिए अतिरिक्त प्लेटफार्म और अन्य परिचालन सुविधाओं का निर्माण होना है। ऐसे में सरकार का यह कदम निराशाजनक है।
अगस्त-2017 में रेलवे और राज्य सरकार के प्रतिनिधियों के बीच हुई बैठक में कहा गया था कि राज्य सरकार ने रेलवे से कहा था कि बिन्नी मिल की भूमि का अधिग्रहण करना व्यवहार्य नहीं होगा। पहले इसके अधिग्रहण के लिए करीब 60 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत का उल्लेख किया गया था। वर्ष-2012 में सरकार ने अधिग्रहण की बात कही थी लेकिन पांच साल बाद इसे व्यवहार्य नहीं बताकर सरकार ने पूरी परियोजना को खटाई में डालने का काम कर दिया है। बिन्नी मिल की भूमि पर उपनगीय रेल के लिए अतिरिक्त प्लेटफार्म और अन्य परिचालन सुविधाओं का निर्माण होना है। ऐसे में सरकार का यह कदम निराशाजनक है।