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karnataka politics: योग दिवस पर इस नेता ने विरोधियों को कराया शीर्षासन

locationबैंगलोरPublished: Jun 22, 2019 04:45:30 pm

अपने राजनीतिक चातुर्य के लिए मशहूर jds सुप्रीमो एवं पूर्व प्रधानमंत्री hd devegowda ने पांच घंटे में तीन विरोधाभासी बयान देकर न केवल अपने गठबंधन सहयोगी कांग्रेस नेताओं को हतप्रभ कर दिया बल्कि पूरे प्रदेश में राजनीति हलचल मचा दी।

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karnataka politics: योग दिवस पर इस नेता ने विरोधियों को कराया शीर्षासन

कई नेताओं की फूली सांसें
राजीव मिश्रा
बेंगलूरु. अपने राजनीतिक चातुर्य के लिए मशहूर जनता दल-एस सुप्रीमो एवं पूर्व प्रधानमंत्री hd devegowda ने पांच घंटे में तीन विरोधाभासी बयान देकर न केवल अपने गठबंधन सहयोगी कांग्रेस नेताओं को हतप्रभ कर दिया बल्कि पूरे प्रदेश में राजनीति हलचल मचा दी। पर्दे के पीछे से राजनीति के लिए मशहूर देवगौड़ा ही ऐसे शख्स हैं जो विरोधियों पर निशाना साधने में माहिर हैं।
दरअसल, शुक्रवार सुबह उन्होंने बेबाकी से यह कह दिया कि राज्य में मध्यावधि चुनाव अवश्यंभावी हैं। मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के पिता देवगौड़ा के इस बयान से राजनीतिक हलकों में सरगॢमयां बढ़ गईं और सभी दलों के नेताओं ने प्रतिक्रिया जाहिर की। हालांकि जहां जद-एस के नेता अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष के बयान पर कुछ नहीं बोले वहीं कांग्रेस नेता गठबंधन सरकार को लेकर बचाव की मुद्रा में आ गए। चार घंटे बाद ही देवगौड़ा ने पलटी मारते हुए कहा कि उनका इशारा अगले वर्ष होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव की ओर था। वे इसके लिए पार्टी को पुनर्जीवित करने में जुटे हैं। प्रदेश के हितों के लिए क्षेत्रीय पार्टियों का मजबूत होना जरूरी है। इसके एक घंटे बाद देवगौड़ा ने जद-एस की बैठक में कार्यकर्ताओं से कहा कि ‘गठबंधन सरकार चलती रहेगी।
मैं इससे किसी भी तरह नहीं जुड़ा हूं और ऐसा कुछ नहीं करूंगा, जिससे इसे नुकसान हो। किन्तु, जो कुछ हो रहा है उस पर मेरी पैनी नजर है। गठबंधन सरकार की एक साल की उपलब्धियों को बयान करने के लिए एक पुस्तिका जारी की गई। मैं देख रहा था, केवल चार मंत्री वहां थे।’ देवगौड़ा अपनी ही बातों को काटने वाले तीन बयान देकर जो संदेश गठबंधन सहयोगी को देना चाहते थे शायद उसमें वे कामयाब रहे। लेकिन, भाजपा इसे ‘blackmail’ की राजनीति मानती है। प्रदेश भाजपा प्रवक्ता एस.प्रकाश ने कहा कि गठबंधन के भीतर सत्ता अपने हाथ में रखने के लिए दोनों ही पार्टियां एक-दूसरे को ब्लैकमेल कर रही हैं। उधर, कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि 79 विधायकों के साथ गठबंधन का बड़ा साझीदार होने के बावजूद पार्टी ने काफी त्याग किया है। जद-एस के सिर्फ 37 विधायक हैं। उन्होंने कहा कि मई 2018 में विधानसभा चुनाव हुए के समय कई मजबूरियां थीं। तब भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिए पार्टी कई चीजें सहज ही स्वीकार करती गई। अब यह ज्यादा दिन नहीं चलेगा। उधर, लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद से ही जद-एस प्रमुख लोकसभा क्षेत्रों में अपनी हार का कारण कांग्रेस को मान रही है।
तूमकुरु से खुद एचडी देवगौड़ा और मंड्या से कुमारस्वामी के बेटे निखिल कुमारस्वामी चुनाव हार गए। अपने बयानों से कई बार देवगौड़ा ने यह याद दिलाने की कोशिश की है कि वे तूमकुरु से चुनाव नहीं लडऩा चाहते थे। उन्होंने मैसूरु लोकसभा क्षेत्र चुना था, लेकिन कांग्रेस नेता खासतौर पर Siddaramaiah ने ऐसा नहीं होने दिया। देवगौड़ा को इस बात का भी डर है कि लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद कहीं अगले चुनाव में पार्टी को सत्ता विरोधी लहर का सामना न करना पड़े। पार्टी की बैठक में उन्होंने इस ओर इशारा भी किया और कहा कि गठबंधन में हर किसी को खुश रखना मुश्किल है। गठबंधन सरकार चलती रहे इसकी जिम्मेदारी दोनों पार्टियों की है। देवगौड़ा यह भी याद दिलाते रहे कि जद-एस ने अपने कोटे के दो मंत्री पद सिद्धरामय्या के लिए छोड़ दिए, जिस पर पिछले सप्ताह दो निर्दलीय विधायकों की नियुक्ति हुई। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि देवगौड़ा का कांग्रेस से निपटने का यह अपना तरीका है। अपने इन तरीकों से एक तरफ वे कांग्रेस को एक लेवल पर रखते हैं तो दूसरी तरफ पार्टी कार्यकर्ताओं को भी खुश रखते हैं। लेकिन, जद-एस के पास अब कांग्रेस के साथ सौदेबाजी की बहुत गुंजाइश नहीं रही।
भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिए गठबंधन सरकार बनी, लेकिन केंद्र में फिर एक बार भाजपा सत्ता में आ गई। जिन उद्देश्य को लेकर गठबंधन बना उनमें सफलता नहीं मिली। दरअसल, राज्य की राजनीति ऐसे मोड़ पर आ गई है जहां हर कोई मध्यावधि चुनाव की बात कर रहा है लेकिन कोई भी विधायक चुनाव नहीं चाहता। पिछले वर्ष विधायकों को तोडऩे की फिराक में लगी भाजपा भी अब चुप है और गठबंधन के खुद बिखरने का इंतजार कर रही है।
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