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आदमी जैसा कर्म करता है वैसा फल भोगता है

locationबैंगलोरPublished: Oct 09, 2019 07:38:06 pm

Submitted by:

Yogesh Sharma

महाश्रमण ने किया धर्मसभा को सम्बोधित

आदमी जैसा कर्म करता है वैसा फल भोगता है

आदमी जैसा कर्म करता है वैसा फल भोगता है

बेंगलूरु. आचार्य महाश्रमण ने संबोधि ग्रंथ के तीसरे अध्याय के अंतिम तीन श्लोक में 53,54,55 का विवेचन करते हुए कहा कि इन तीनों श्लोकों में जो बताया गया है वह है कि प्राणी अपने कर्मों से भोगता हुआ जन्म भी लेता है और फिर मर जाता है। जो वंचित रहता है उसकी प्रधानता नहीं कर्म की प्रधानता है। मैं जो चाहूं वह हो जाए यह जरूरी नहीं। जैसा कर्म है भोगता है। आदमी खुद अपना नुकसान या भला करता है। आत्मा पाप कर्म द्वारा जितना नुकसान करती है उतना नुकसान तो एक आदमी दूसरे आदमी का कंठ काट दे तो भी नहीं होता। कृत्य पापों का फल कितने जन्मों तक भोगना पड़ता है। पूज्य प्रवर ने फरमाया कि पाप कर्म करने वाली आत्मा दुरात्मा होती है। परमात्मा तो वह है जो मोक्ष को प्राप्त करती है। महात्मा वह है जो साधुत्व ग्रहण कर साधना करने वाली है। परमात्मा या महात्मा कोई बने या न बने पर कम से कम दुरात्मा तो न बने। पापों में रत न रहो। सदात्मा बनो ,सज्जन बनो। सदाचार पर चलने वाला बनो। झूठ कपट से दूर होकर अणुव्रती श्रावक बनो। दुरात्मा अहित करने वाली नुकसान करने वाली होती है एक दृष्टांत से समझाया कि कर्म करने वाला आदमी है तो वह खुद फल भोगता है। आचार्य ने कहा कि पशु भी अपना किया भोगता है। एक गधे और बैल के दृष्टांत को बताते हुए कहा कि कुटिलता वही रखनी चाहिए जहां मालिक दयालु हो नहीं तो दुष्ट कर्म से जीवन से हाथ धोना पड़ता है। मालिक कड़ा है तो ढिटाई नहीं। संबोधि के तीसरे अध्याय आत्मकृतृत्ववाद में यहीं मेघ से कहा गया है कि मोक्ष स्थान को प्राप्त करो ताकि जन्म मरण से छुटकारा मिल सके। आदमी जैसा कर्म करता है वैसा फल भोगता है। महात्मा महाप्रज्ञ का विवेचन करते हुए महाश्रमण ने महाप्रज्ञ के आशु-काव्य व्यापक अध्ययन साहित्य का अभाव व्यापक क्षेत्र में चिंतन आदि प्रसंगों को विस्तार से समझाया। तीन दिवसीय ज्ञानशाला राष्ट्रीय प्रशिक्षक प्रशिक्षण शिविर के समापन पर कहा कि ज्ञानशाला तेरापंथी महासभा के तत्वावधान में बाल पीढ़ी के संस्कार निर्माण का उपयोगी उपक्रम है। उसमें प्रशिक्षण देने वाले शिक्षकों का ही उपयोगी योगदान है। इसमें जो धार्मिक संदर्भ में संस्कार निर्माण में सेवा देते हैं ऐसा जीवन वांछनीय है। साध्वी वर्या ने संसार भावना के बारे में बताया। ज्ञानशाला प्रध्यापक डालम चंद नौलखा ने शिविर की उपयोगिता के के संदर्भ में बताया। उन्होंने बताया कि वे स्वयं एवं उनके भाई निर्मल नौलखा प्रशिक्षण देने का प्रयास करते हैं। स्थानीय तेरापंथ सभा के मंत्री प्रकाश लोढ़ा ने विचार व्यक्त किए। व्यवस्था समिति की ओर से डालमचंद नौलखा का सम्मान किया गया। बहादुर सिंह सेठिया ने गीतिका का प्रस्तुत की। संचालन मुनि दिनेश कुमार ने किया।
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