उन्होंने श्रीमद् उत्तराध्ययन सूत्र के बारहवें अध्ययन का वर्णन करते हुए कहा कि यह अध्ययन तपस्या की महिमा का बखान करता है। इस अवसर्पिणी काल में अनेक आत्माएं ऐसी हुई हंै जो कठिन परिस्थितियों में घोर तप साधना करके मोक्ष पहुंची हैं। ऐसी आत्माओं को स्वयं इंद्र देव भी नमन करते हैं। ऐसी आत्माएं जिन्होंने स्वाद जीत लिया हो, वचन जीत लिया हो, अप्रमादी हो और अल्प परिग्रही हो तो उनकी सेवा देवता भी करते हैं। जैन शास्त्रों के अनुसार व्यक्ति की साधना तभी सफल होगी जब वो अपने अंत:करण से संसार चीजों के प्रति राग एवं द्वेष भावों को मिटाएगा।
उन्होंने महापापी के 12 बोल में से आत्मघाती का अर्थ समझते हुए कहा कि आत्मघात करना महापाप है। प्रारम्भ में लोकेशमुनि ने भी विचार व्यक्त किए। साध्वी पुनीतज्योति की मंगल उपस्थिति रही। संघ मंत्री मोतीलाल ढ़ेलडिया ने संचालन किया।