बैंगलोर

राज्य में हिंदी थोपने के खिलाफ बढऩे लगा विरोध

नई शिक्षा नीति के मसौदे में त्रिभाषा फॉर्मूले पर राजनीतिक विवाद बढ़ता जा रहा है। दक्षिण के राज्यों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है।

बैंगलोरJun 04, 2019 / 11:32 pm

शंकर शर्मा

राज्य में हिंदी थोपने के खिलाफ बढऩे लगा विरोध

बेंगलूरु . नई शिक्षा नीति के मसौदे में त्रिभाषा फॉर्मूले पर राजनीतिक विवाद बढ़ता जा रहा है। दक्षिण के राज्यों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है। दक्षिण भारत की राजनीतिक पार्टियों का कहना कि इस फॉर्मूले के तहत हिंदी उन पर थोपी जा रही है जिसका वे विरोध करेंगे। डीएमके नेता स्टालिन के बाद राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या और मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी भी हिंदी को तीसरी भाषा बनाए जाने के विरोध में खड़े हो गए।

पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या ने कड़ा विरोध करते हुए कहा कि प्रदेश के जल, जमीन व भाषा के मसलों पर कोई समझौता नहीं किया जाएगा। केन्द्र सरकार के हिंदी भाषा थोपने के किसी भी प्रयास का हम तमिलनाडु की ही तरह कड़ा विरोध करेंगे। सिद्धरामय्या ने सोमवार को मैसूरु में संवाददाताओं से कहा कि त्रिभाषा सूत्र के बारे में नीति लाना हमारे ऊपर जबरन हिंदी थोपने का प्रयास होगा। राज्य जल, जमीन व भाषाई मसलों पर कभी समझौता नहीं करेगा। इसके बावजूद यदि हम पर जबरन हिंदी थोपने का प्रयास किया जाता है तो हम भी तमिलनाडु की तर्ज पर इसका विरोध करेंगे। इस बारे में केन्द्र सरकार एकतरफा पैसला करने जा रही है।


उन्होंने कहा कि शिक्षा में जो मातृ भाषा नहीं हैं वह ऐच्छिक होनी चाहिए। दूसरी भाषा को जबरदस्ती सिखाने से बच्चों की सीखने की ताकत कुंठित हो जाती है। जो लोग गैर हिन्दी भाषी हैं उन पर हिन्दी भाषा को थोपने की कोशिश करना संघीय व्यवस्था के लिए घातक सिद्ध होगा। कर्नाटक में कन्नड़ ही सार्वभौम भाषा है।


उन्होंने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षण नीति के जरिए कन्नडिग़ाओं पर हिन्दी थोपना सहन नहीं किया जाएगा। कन्नड़ हमारी अस्मिता है और राज्य के सभी जनप्रतिनिधियों को इस पर दलगत भावनाओं से ऊपर उठकर चिंतन करना होगा।


गैर हिंदीभाषी राज्यों पर क्रूर हमला
इससे पहले सिद्धरामय्या ने कई ट्वीट भी किए। उन्होंने कहा, ‘नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में गैर-हिंदी राज्यों पर हिंदी थोपी जा रही है जो कि हमारी भावनाओं के खिलाफ है। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि हिंदी को थोपने के बजाय सरकार को राज्यों की क्षेत्रीय पहचान को आगे बढ़ाने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।


उन्होंने कहा कि राज्यों को अपने विचार, अपनी संस्कृति एवं एवं अपनी भाषा की अभिव्यक्ति के लिए ज्यादा अवसर मिलना चाहिए। उन्होंने कहा, यदि कुछ लोगों की नजर में क्षेत्रीय पहचान कुछ महत्व नहीं रखता है तो हिंदी को थोपना और कुछ नहीं बल्कि हमारे राज्यों पर क्रूर हमला है।


राज्य के मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी ने भी हिंदी को तीसरी भाषा के तौर पर अनिवार्य किए जाने का विरोध करते हुए कहा था कि भाषा किसी पर भी थोपी नहीं जानी चाहिए। उन्होंने केंद्र सरकार के सामने इस विषय में विरोध दर्ज कराने की बात भी कही।


हालांकि सोमवार को ही यह खबर भी आई है कि केंद्र सरकार ने दक्षिण के राज्यों में उठ रहे विरोध के स्वरों को देखते हुए नई शिक्षा नीति के मसौदे में त्रिभाषा फार्मूले को वापस लेते हुए इसे अब एक वैकल्पिक व्यवस्था देने का फैसला कर लिया है। इसके बावजूद दिनभर विरोध की बातें चलती रहीं।


कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने आनंदराव सर्कल पर एकत्र होकर केंद्र सरकार की शिक्षा नीति के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया और हिंदी नहीं थोपने की चेतावनी दी।

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