गौरतलब है कि कर्नाटक उच्च न्यायालय ने गत 11 अगस्त को अपने फैसले में इस मंदिर को रामचन्द्रपुरम मठ के हवाले करने के बारे में 2008 में तत्कालीन भाजपा सरकार द्वारा जारी आदेश को रद्द करने के साथ ही कहा था कि पिछली सरकार ने यह कदम किसी सदाशयता के लिए नहीं बल्कि मठ को फायदा पहुंचाने के मकसद से उठाया था। तब न्यायाधीश बी.वी. नागरत्ना व न्यायाधीश अरविंद कुमार की सदस्यता वाली पीठ ने 2008 के राज्य सरकार के निर्णय को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई के बाद फैसले में कहा था कि राज्य सरकार को अधिसूचित संस्थाओं की सूची से गोकर्ण महाबलेश्वर मंदिर व उसके सहायक मंदिरों को हटाने का कोई अधिकार नहीं है और ना ही कानूनन राज्य सरकार ऐसा कर सकती है।
राज्य सरकार का यह कदम अवैध है और उसके अधिकार क्षेेत्र से बाहर है। उन्होंने कहा था कि यह कोर्ट इस वास्तविकता से अनजान नहीं है कि राज्य सरकार ने गैर कानूनी काम किया है और इस देवस्थान को एक निजी मठ के हवाले कर दिया है। कोर्ट ने इसके बाद उत्तर कन्नड़ के जिलाधिकारी की अध्यक्षता में मंदिर की पंरपराओं की बहाली व भक्तों को सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए निगरानी समिति का गठन किया।
इतना ही नहीं कोर्ट ने समिति के सलाहकर के तौर पर उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश बी.एन. श्रीकृष्णा को भी नियुक्त किया। कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले के बाद उत्तर कन्नड़ के जिलाधिकारी ने मंदिर को देवस्थान विभाग के अधीन लेने की प्रक्रिया शुरू करने के साथ ही प्रशासक की भी नियुक्त कर दी, लेकिन बुधवार को आए शीर्ष अदालत कोर्ट के फैसले के बाद स्थिति बदल गई है।