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हमारे गुण हमारे व्यक्तित्व के परिचायक-देवेंद्रसागर

locationबैंगलोरPublished: Nov 29, 2020 07:54:58 pm

Submitted by:

Yogesh Sharma

धर्मचर्चा

हमारे गुण हमारे व्यक्तित्व के परिचायक-देवेंद्रसागर

हमारे गुण हमारे व्यक्तित्व के परिचायक-देवेंद्रसागर

बेंगलूरु. सुख नहीं बल्कि दुख हमें जीवन जीने की बेहतर सीख देता है। सुख और दुख जीवन के एक सिक्के के दो पहलू की तरह हैं। एक के बिना दूसरे की कल्पना भी नहीं की जा सकती। दुख हमें मुश्किलों से जूझने, विषम परिस्थितियों से निकलने और आगे बढऩे का मार्ग दिखाता है। हमने मातम को हमेशा नकारात्मक रूप में देखने की आदत बना ली है जबकि शोक को सकारात्मक रूप में देखने की जरूरत है। यह बात आचार्य देवेंद्रसागर सूरी ने राजाजीनगर के सलोत जैन आराधना भवन में अपने प्रवचन में कही। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिकता के अनुसार व्यक्ति को मातम से दूर नहीं भागना चाहिए बल्कि इसके साथ कार्य करना चाहिए। इसका भेद खोलना चाहिए, इसका मुकाबला करना चाहिए और इसे बदलने का रास्ता ढूंढना चाहिए। इसके साथ काम करने के लिए हमें दिव्य ऊर्जा में डुबकी लगानी चाहिए। अफसोस से होने वाले तनाव को कम करने का संकल्प लेना चाहिए।
अपने समाज में कुछ न करने की प्रवृत्ति को हम नकारात्मक या बुरे रूप में ही देखते हैं। ऐसा सोचना हमारी आदत है। यह कहा जाता है कि जब हम कुछ नहीं करते या निष्क्रियता का परिचय देते हैं तब हम अपने अंदर के गुणों को नष्ट करते हैं। परंतु इस तरह की सोच से हमें घिरा नहीं रहना चाहिए। ऐसा कर हम अपना ही नुकसान कर रहे होते हैं। हमें अपने अंदर के गुणों को बचाकर रखने की जरूरत है। अपनी ताजगी, मुस्कराहट, आनंद और संवेदनशीलता इन सबको बचाकर रखना है। ऐसा करने पर ही हम किसी का मददगार बन सकते हैं। दिन भर में बहुत सारी भावनाएं होती हैं, जिन्हें हम महसूस करते हैं। उदासी उनमें से ही एक है। यह हमारे काले बादलों की तरह घेरे रखती है। यह स्थिति किसी नुकसान से गुजरने, किसी तरह का दर्द झेलने या दूसरों की पीड़ा देखने से शुरू हो सकती है। यह स्थिति जल्द ही खत्म हो सकती है या लंबी भी चल सकती है। उन्होंने कहा कि दरअसल हमारे गुण हमारे व्यक्तित्व के ही परिचायक हैं। जब हम आनंद में रहते हैं, तभी दूसरों को आनंदित रखने की कोशिश करते हैं। दूसरी ओर जब हम दुख की स्थिति में होते हैं, तब चुपचाप रहते हैं और किसी के प्रति ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते हैं। हमें आत्मा यानी स्वयं को जानने की कोशिश करते हुए जीने का तरीका सीखना चाहिए। हमें यह जानना चाहिए कि हम शरीर नहीं हैं, शरीर के अंदर हैं। इसलिए सौभाग्य और दुख जो हम शरीर और मस्तिष्क से महसूस करते हैं, वे हमारी आत्मा पर असर नहीं डालते।

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