शेट्टर ने ऑक्सीजन उत्पादन और उसकी आपूर्ति में आ रही चुनौतियों और कठिनाइयों का समाधान करने के लिए राज्य भर के ऑक्सीजन वितरकों से भी मुलाकात की। उन्होंने कहा कि ‘जब ऑक्सीजन का परिवहन हो रहा हो तो आरटीओ (क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय) या जिला प्रशासन को उसमें कोई व्यवधान नहीं डालना चाहिए। हमने लॉजिस्टिक्स के बारे में भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के साथ एक वर्चुअल चर्चा भी की है। हमारे संज्ञान में आया है कि टोल शुल्क लेने के लिए टैंकरों को रोका जाता है। अब आगे से टैंकरों में एक लाल क्रास का स्टिकर लगा रहेगा जो कोविड इमरजेंसी का प्रतीक होगा। उसे उसी तरह अनुमति देना होगा जैसा एंबुलेंस को दिया जाता है।Ó
फिलहाल राज्य में 45 ऑक्सीजन टैंकर हैं जिनकी क्षमता 484 मेट्रिक ट्रन ऑक्सीजन परिवहन की है। अब 33 नाइट्रोजन और 16 ऑर्गन टैंकरों को भी ऑक्सीजन परिवहन की अनुमति दे दी गई है। सरकार ने केंद्रीय सचिव को भी पत्र लिखा है कि राज्य में जो 812 टन ऑक्सीजन का दैनिक उत्पादन हो रहा है उसमें राज्य की हिस्सेदारी 300 टन से बढ़ाई जाए। उधर, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने भी तेजस की ऑन बोर्ड ऑक्सीजन उत्पादन प्रणाली के आधार पर चिकित्सकीय जरूरतों के लिए ऑक्सीजन उत्पादन की तकनीक विकसित की है।
शेट्टर ने कहा कि डीआरडीओ से भी राज्य में 5-6 दिन के भीतर अपना ऑक्सीजन संयंत्र स्थापित करे। डीआरडीओ ने उत्तर प्रदेश में पहले ही संयंत्र स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। उनसे चर्चा हुई है कि वे यहां भी संयंत्र लगाएं क्योंकि ऑक्सीजन की कमी से बेंगलूरु भी जूझ रहा है।
शेट्टर ने कहा कि डीआरडीओ से भी राज्य में 5-6 दिन के भीतर अपना ऑक्सीजन संयंत्र स्थापित करे। डीआरडीओ ने उत्तर प्रदेश में पहले ही संयंत्र स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। उनसे चर्चा हुई है कि वे यहां भी संयंत्र लगाएं क्योंकि ऑक्सीजन की कमी से बेंगलूरु भी जूझ रहा है।
उधर, जिंदल स्टील वक्र्स के वरिष्ठ उपाध्यक्ष ने बताया कि वे हर रोज 340 से 350 टन ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं। किसी दिन यह 400 टन तक भी होता है। तब 120 टन ऑक्सीजन दूसरे राज्यों को भेज दिया जाता है। अगर उत्पादन 300 टन तक होता है तो 70 से 80 टन दूसरे राज्यों को भेजा जाता है। ऐसा कोई निर्देश नहीं है कि दूसरे राज्यों को ऑक्सीजन नहीं भेजना है।
उधर, खनन एवं भू-गर्भ मंत्री मुरुगेश निराणी ने सभी स्टील कंपनियों से कहा है कि कच्चे स्टील उत्पादन के काम आने वाले ऑक्सीजन की आपूर्ति चिकित्सकीय जरूरतों के लिए करें। उन्होंने कहा कि राज्य की स्टील कंपनियां 600 टन ऑक्सीजन की आपूर्ति कोविड मरीजों के इलाज के लिए करने को सहमत हुई हैं। अकेले जिंदल स्टील ने 400 टन ऑक्सीजन आपूर्ति करने की बात कही है। जिंदल प्रबंधन को कहा गया है कि वे अस्पतालों को प्राथमिकता के साथ ऑक्सीजन पहुंचाए।
उधर, खनन एवं भू-गर्भ मंत्री मुरुगेश निराणी ने सभी स्टील कंपनियों से कहा है कि कच्चे स्टील उत्पादन के काम आने वाले ऑक्सीजन की आपूर्ति चिकित्सकीय जरूरतों के लिए करें। उन्होंने कहा कि राज्य की स्टील कंपनियां 600 टन ऑक्सीजन की आपूर्ति कोविड मरीजों के इलाज के लिए करने को सहमत हुई हैं। अकेले जिंदल स्टील ने 400 टन ऑक्सीजन आपूर्ति करने की बात कही है। जिंदल प्रबंधन को कहा गया है कि वे अस्पतालों को प्राथमिकता के साथ ऑक्सीजन पहुंचाए।
केंद्र से 1500 टन ऑक्सीजन की मांग
इस बीच, राज्य सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए केंद्र सरकार से १५०० टन अतिरिक्त ऑक्सीजन उपलब्ध कराने की मांग की है। स्वास्थ्य मंत्री डॉ के. सुधाकर ने बुधवार को पत्रकारों से बातचीत में कहा कि मुख्यमंत्री इस बारे में केंद्र से अपील कर चुके हैं। हमें उम्मीद है कि केंद्र सरकार से जल्द ही सकारात्मक उत्तर मिलेगा। सुधाकर ने कहा कि राज्य के लिए 300 टन ऑक्सीजन आरक्षित रखा गया है। राज्य में कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं जिसके कारण इस महीने के अंत तक प्रतिदिन 500-600 टन ऑक्सीजन की मांग होने की संभावना है। मई महीने में इसकी मांग बढ़कर 1500 टन हो जाने की संभावना है।
इस बीच, राज्य सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए केंद्र सरकार से १५०० टन अतिरिक्त ऑक्सीजन उपलब्ध कराने की मांग की है। स्वास्थ्य मंत्री डॉ के. सुधाकर ने बुधवार को पत्रकारों से बातचीत में कहा कि मुख्यमंत्री इस बारे में केंद्र से अपील कर चुके हैं। हमें उम्मीद है कि केंद्र सरकार से जल्द ही सकारात्मक उत्तर मिलेगा। सुधाकर ने कहा कि राज्य के लिए 300 टन ऑक्सीजन आरक्षित रखा गया है। राज्य में कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं जिसके कारण इस महीने के अंत तक प्रतिदिन 500-600 टन ऑक्सीजन की मांग होने की संभावना है। मई महीने में इसकी मांग बढ़कर 1500 टन हो जाने की संभावना है।
95% मरीजों को भर्ती होने की जरुरत नहीं
सुधाकर ने कहा कि संक्रमित होने की पुष्टि के बाद लोगों में अस्पताल में भर्ती होने को लेकर व्यग्रता है जबकि ९५ प्रतिशत मरीजों को अस्पताल में भर्ती किए जाने की जरुरत नहीं है। कम या नगण्य लक्षण वाले घर पर ही एकांतवास में रहकर उपचार ले सकते हैं। विभाग के चिकित्सक ऐसे मरीजों के घर जाकर ही उन्हें आवश्यक सलाह देंगे। क्या करना चाहिए, क्या नहीं इस बारे में लोगों को जागरुक किया जाएगा।
सुधाकर ने कहा कि संक्रमित होने की पुष्टि के बाद लोगों में अस्पताल में भर्ती होने को लेकर व्यग्रता है जबकि ९५ प्रतिशत मरीजों को अस्पताल में भर्ती किए जाने की जरुरत नहीं है। कम या नगण्य लक्षण वाले घर पर ही एकांतवास में रहकर उपचार ले सकते हैं। विभाग के चिकित्सक ऐसे मरीजों के घर जाकर ही उन्हें आवश्यक सलाह देंगे। क्या करना चाहिए, क्या नहीं इस बारे में लोगों को जागरुक किया जाएगा।
सुधाकर ने कहा कि हल्के लक्षण वाले मरीजों को वैकल्पिक आइसोलेशन के लिए होटल में रखा जा सकता है। मंत्री ने कहा कि अगर हल्के लक्षण वाले मरीजों को अस्पताल में भर्ती किया गया तो गंभीर मरीजों को उपचार उपलब्ध कराना मुश्किल हो जाएगा। मंत्री ने कहा कि गंभीर लक्षण वाले मरीजों को ऑक्सीजन और वेंटिलेटर उपलब्ध कराना प्राथमिकता है और इसके बारे में चिकित्सक हालात के हिसाब से निर्णय लेंगे।