scriptजयनगर में दीक्षाकल्याणक दिवस पर पंचाभिषेक | Panchabhisheka on initiation welfare day in Jayanagar | Patrika News

जयनगर में दीक्षाकल्याणक दिवस पर पंचाभिषेक

locationबैंगलोरPublished: Feb 25, 2021 09:08:19 pm

Submitted by:

Yogesh Sharma

श्रद्धालु लाभान्वित हुए

जयनगर में दीक्षाकल्याणक दिवस पर पंचाभिषेक

जयनगर में दीक्षाकल्याणक दिवस पर पंचाभिषेक

बेंगलूरु. जयनगर के राजस्थानी जैन संघ में विराजित आचार्य देवेंद्रसागर सूरी की निश्रा में मूलनायक धर्मनाथ भगवान के दीक्षाकल्याणक दिवस पर अभिषेक का आयोजन हुआ। इसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित हुए। सुबह 7 बजे प्रारंभ हुआ अभिषेक दो घंटे तक चला। इसमें अक्षत, रुद्राक्ष, केसर जल का अभिषेक विशेष मंत्रोच्चार पूर्वक किया गया। गुरु पुष्य नक्षत्र का योग होने से भी श्रद्धालु विशेष लाभान्वित हुए। आचार्य ने श्रद्धालुओं को संबोधन में कहा कि तीर्थ यानि घाट। जिसे पाकर संसार-समुद्र से तरा जाए वह तीर्थ है। अत: मोक्ष प्राप्ति के उपाय भूत रत्नत्रय धर्म को भी तीर्थ कहा जाता है। तीर्थं करोति इति तीर्थंकर’ धर्मरूपी तीर्थ के जो प्रवर्तक होते हैं वे तीर्थंकर कहलाते हैं। तीर्थंकरों का तीर्थ, उनका शासन सर्वजन हितकारी, सर्वसुखकारी होने से सर्वोदय तीर्थ कहा जाता है। जीव यदि सम्यक पुरुषार्थ करें तो पतित से पावन, नर से नारायण एवं अपूर्ण से पूर्ण बन सकता है। तीर्थंकर परमात्मा का गर्भ में आना, जन्म लेना, दीक्षित होना, केवलज्ञान पाना और निर्वाण को प्राप्त होना ये सभी बीज से वृक्ष तक की सार्थक सफल यात्रा का द्योतक है। उन्होंने कहा कि संसार की विरक्ति का कोई कारण बने बिना मुक्ति का मार्ग प्रशस्त नहीं होता। यह भी तभी संभव है जब मनुष्य के संस्कार चिंतन को सही दिशा में ले जाने की क्षमता रखते हों। भगवान के कर्मयोगी जीवन, जिनमें सांसारिक कार्य, राज्य संचालन, परिवार संचालन आदि सम्मिलित होते हैं के बीच एक दिन धर्मनाथ भगवान को ध्यान आता है आयु का इतना लंबा काल मैंने केवल सांसारिकता में ही खो दिया। अब तक मैंने संसार की संपदा का भोग किया किन्तु अब मुझे आत्मिक संपदा का भोग करना है। संसार का यह रूप, सम्पदा क्षणिक है, अस्थिर है, किन्तु आत्मा का रूप आलौकिक है, आत्मा की संपदा अनंत अक्षय है। मैं अब इसी का पुरुषार्थ जगाऊँगा। इस प्रकार जब धर्मनाथ प्रभु अपनी आत्मा को जागृत कर रहे थे, तभी लोकान्तिक देव आए और भगवान की स्तुति करके उनके विचारों की सराहना की।और पश्चात वे महासुदी तेरस के दिन दीक्षित हुए . जीवन के इन्हीं पावन प्रसंगों पर देवगण, विद्याधर और मनुष्यादि पूजा आदि महोत्सव करते हैं।
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