दर्जे को लेकर राजनीतिक जंग
पिछले कुछ समय से लिंगायत और वीरशैव को अलग धर्म का दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। संविधान या कानून में किसी धर्म का को दर्जा देने का प्रावधान नहीं होने के बावजूद पक्ष और विपक्ष के नेता इसे भुनाने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। राजनीतिक हलकों में माना जाता है कि मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या ने विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के राजनीतिक जनाधार को कमजोर करने की कोशिश के तहत दशकों पुरानी इस मांग को हवा दी। शुरुआती दौर में इस मसले को लेकर मौन रही भाजपा अब खुलकर इसके विरोध में आ चुकी है और सिद्धरामय्या व कांग्रेस पर राजनीतिक लाभ के समाज और समुदाय को बांटने का आरोप लगा रही है। हालांकि, सिद्धरामय्या ऐसे आरोपों को खारिज करते रहे हैं।
विभिन्न समुदायों से आने वाले वीरशैव और लिंगायात नेताओं के बीच भी इस मसले को लेकर बयानबाजी का दौर चल रहा है। वीरशैव नेताओं का समूह अलग धर्म के दर्जे की मांग का विरोध कर रहा है। इस समूह में कांग्रेस नेता शामनूर शिवशंकरप्पा, उनके पुत्र व बागवानी मंत्री एस एस मल्लिकार्जुन और स्थानीय निकाय मंत्री ईश्वर खांड्रे शामिल हैं। इन नेताओं का तर्क है कि वीरशैव और लिंगायत एक ही है और इस पंथ को वीरशैव-लिंगायत कहा जाना चाहिए जबकि लिंगायत नेताओं का समूह अलग धर्म की मांग का समर्थन कर रहा है। इस समूह में जल संसाधन मंत्री एम बी पाटिल, खान व भूगर्भ मंत्री विनय कुलकर्णी और उच्च शिक्षा मंत्री बसवराज रायरेड्डी शामिल हैं। इस समूह का तर्क है कि वीरशैव और लिंगायतों के दर्शन अलग-अलग हैं और लिंगायतों को अलग धर्म ही कहा जाना चाहिए। काफी लंबे जद्दोजहद के बाद मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या ने इस मसले पर आगे बढऩे का फैसला किया और राज्य अल्पसंख्यक आयोग ने २२ दिसम्बर को विशेषज्ञ समिति का गठन किया था।
मामला अदालत में लंबित
पिछले कुछ समय से लिंगायत और वीरशैव को अलग धर्म का दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। संविधान या कानून में किसी धर्म का को दर्जा देने का प्रावधान नहीं होने के बावजूद पक्ष और विपक्ष के नेता इसे भुनाने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। राजनीतिक हलकों में माना जाता है कि मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या ने विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के राजनीतिक जनाधार को कमजोर करने की कोशिश के तहत दशकों पुरानी इस मांग को हवा दी। शुरुआती दौर में इस मसले को लेकर मौन रही भाजपा अब खुलकर इसके विरोध में आ चुकी है और सिद्धरामय्या व कांग्रेस पर राजनीतिक लाभ के समाज और समुदाय को बांटने का आरोप लगा रही है। हालांकि, सिद्धरामय्या ऐसे आरोपों को खारिज करते रहे हैं।
विभिन्न समुदायों से आने वाले वीरशैव और लिंगायात नेताओं के बीच भी इस मसले को लेकर बयानबाजी का दौर चल रहा है। वीरशैव नेताओं का समूह अलग धर्म के दर्जे की मांग का विरोध कर रहा है। इस समूह में कांग्रेस नेता शामनूर शिवशंकरप्पा, उनके पुत्र व बागवानी मंत्री एस एस मल्लिकार्जुन और स्थानीय निकाय मंत्री ईश्वर खांड्रे शामिल हैं। इन नेताओं का तर्क है कि वीरशैव और लिंगायत एक ही है और इस पंथ को वीरशैव-लिंगायत कहा जाना चाहिए जबकि लिंगायत नेताओं का समूह अलग धर्म की मांग का समर्थन कर रहा है। इस समूह में जल संसाधन मंत्री एम बी पाटिल, खान व भूगर्भ मंत्री विनय कुलकर्णी और उच्च शिक्षा मंत्री बसवराज रायरेड्डी शामिल हैं। इस समूह का तर्क है कि वीरशैव और लिंगायतों के दर्शन अलग-अलग हैं और लिंगायतों को अलग धर्म ही कहा जाना चाहिए। काफी लंबे जद्दोजहद के बाद मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या ने इस मसले पर आगे बढऩे का फैसला किया और राज्य अल्पसंख्यक आयोग ने २२ दिसम्बर को विशेषज्ञ समिति का गठन किया था।
मामला अदालत में लंबित
इस बीच, समिति के गठन का मामला अदालत भी पहुंच चुका है। शुक्रवार को इस मसले पर दायर दो याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अंतरिम आदेश में कहा था कि समिति की रिपोर्ट के आधार पर सरकार कोई कार्रवाई याचिका निस्तारण होने तक नहीं कर सकती है।