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पराक्रम हमेशा सत्य में होना चाहिए

locationबैंगलोरPublished: Oct 23, 2019 07:35:49 pm

गणेश बाग में 21 दिवसीय श्रीमद् उत्तराध्ययन श्रुतदेव की आराधना में उपाध्याय प्रवीणऋषि ने कहा कि जीवन में मिथ्यात्व का पराक्रम अनादि काल से चला आ रहा है।

पराक्रम हमेशा सत्य में होना चाहिए

पराक्रम हमेशा सत्य में होना चाहिए

बेंगलूरु. गणेश बाग में 21 दिवसीय श्रीमद् उत्तराध्ययन श्रुतदेव की आराधना में उपाध्याय प्रवीणऋषि ने कहा कि जीवन में मिथ्यात्व का पराक्रम अनादि काल से चला आ रहा है। जिसकी कोई फलश्रुति, समाधान और संतुष्टि नहीं होती है। कितनी ही मेहनत करो तो लगता है कि हाथ खाली ही रह गये। जीवन की इस रिक्तता को भरने के लिए परमात्मा कहते हैं पराक्रम हमेशा सत्य, श्रद्धा में होना चाहिए, तब ही दु:खों से मुक्ति मिलेगी और सिद्ध, बुद्ध, मुक्त बन पाएंगे और परम शांति की अनुभूति भी होगी। अपना पराक्रम मिथ्या या सत्य का है उसके लिए एक कसौटी दी गई है- यदि सामायिक, तपस्या, आराधना, साधना आदि करके मन को समाधि है, शांति है तो ये सम्यक्तव भाव अर्थात सत्य की अनुभूति में है। यदि सामायिक तपस्या, आराधना, साधना करके शांति की अनुभूति नहीं हो रही है तो गहराई से सोचना होगा कि पराक्रम मिथ्यात्व का तो नहीं हो रहा है।
उपाध्याय ने बताया कि सम्यकत्व पराक्रम के 72 मार्ग बताए गए हैं जिनके माध्यम से जीवन में सत्य का पराक्रम शुरू हो सकता है। किसी भी रास्ते से कदम उठे मंजिल एक ही मिलेगी-सत्य की और सफलता की। क्योंकि एक रास्ते के साथ सारे रास्ते जुड़े हुए हैं। स्वाध्याय का सूत्र देते हुए कहा है कि वाचना-जिसका अर्थ है कि गुरू के मुख से परमात्मा के शब्दों को ग्रहण करना।
प्रवर्तना के बारे में कहा गया है कि यदि सही तरीके से किसी मंत्र को बार-बार जाप किया जाए तो उससे व्यंजन लब्धि यानि प्रकट करने की अनुभूति को व्यक्त करने की शक्ति प्राप्त होती है। अनुप्रेक्षा का अर्थ है जो हम सुनते हैं, महसूस करते है, ध्यान करते हैं उससे तुरंत मुक्त नहीं होना, बल्कि उसे थोड़ी देर तक महसूस करते रहना चाहिए।
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