बच्चों को तीन व्यक्तियों से सदा डरते रहना चाहिए। प्रथम मां, द्वितीय पिता, तृतीय महात्मा या परमात्मा ये तीनों हमारे आदर्श हैं। सदा आदर सम्मान का संस्कारदाता जीवनदाता परम उपकारी हैं। इनके अभाव में व्यक्ति पशु के समान है। सदा इनकी आस्था के अभाव में पशु से भी नीचे गिर जाता है। मां की विशेषता है कि वह संतान के शरीर के स्वास्थ्य और मन की पवित्रता, सुंसस्कार डालने का सदा प्रयास करती रहती है।
पिता घर का मस्तक है। मां घर की आत्मा है। यदि इसका तिरस्कार करें तो जीवन से अच्छाईयां समाप्त होने लगती है। घर की प्रसन्नता पलायन करने लगती है। शरीर से यदि मस्तक की उपेक्षा करेंगे तो जीवन अस्त-पस्त हो जाएगा। समाज में सम्मान समाप्त हो जाएगा। माता-पिता घर की शोभा है। व्यवस्था है, रोशनी और परमात्मा जीवन की मंजिल है।
आत्मा के लिए धर्म साधना जरूरी
बेंगलूरु. महावीर भवन अलसूर में जयधुरन्धर मुनि ने प्रवचन में कहा कि जीवन जीने की कला समझ लेने वाला अपना जीवन सार्थक कर लेता है। गृहस्थ साधक को धर्म और धन रूपी दो पटरियों में सामंजस्य बैठाकर अपना जीवन निर्वाह करना चाहिए। यह भी एक कला है। उन्होंने कहा कि शरीर के लिए रोटी कपड़ा और मकान की आवश्यकता होती है। आत्मा के लिए धर्म साधना जरूरी है। धन के प्रति आसक्ति जीव का पतन कर देती है।
धर्म के आचरण से पुण्य बढ़ता है और जीव का उत्थान प्रशस्त होता है। हिंसा से उपार्जित धन पाप है। ऐसा धन सदैव हमें भयभीत करता है। कर्नाटक केसरी गणेशीलाल की पुण्यतिथि प्रसंग पर मुनि ने गुणानुवाद करते हुए उन्हें खादी प्रेमी और मिथ्यात्व विरोधी बताया। गणेशीलाल का दक्षिण में बसे जैन समाज पर बहुत उपकार है।