इनमें हृदयाघात का खतरा भी ज्यादा रहता है। इनकी उम्र 40 वर्ष या कम होती है। उक्त बातें जयदेव इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोवैस्क्यूलर सांइस एंड रिसर्च के निदेशक डॉ. सी.एन. मंजूनाथ ने कही। वे बेंगलूरु विवि के सिविल इंजीनियरिंग विभाग की ओर से प्राकृतिक संसाधनों पर वैश्विक वायुमंडलीय परिवर्तन के प्रभाव विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि लकड़ी, सूखे पत्ते व कचरा जलाने का चलन भी बढ़ा है। इसके कारण वायु की गुणवत्ता बुरी तरह प्रभावित हुई है। लोग फेफड़ों की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। केंद्रीय व्यापारिक जिला (सीबीडी) से गुजरना पांच से दस सिगरेट पीने के बराबर है।
प्रदूषण जिस तरह से पर्यावरण व लोगों को प्रभावित कर रहा है, वह दिन दूर नहीं जब लोग शहर से गांवों की ओर रुख करेंगे। बीयू के कलुपति प्रो. वेणुगोपाल के. आर. ने कहा कि पानी के लिए तीसरे विश्व युद्ध की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता।
यूनिवर्सिटी विश्वेश्वरैय्या कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के प्राचार्य प्रो. एच. एन. रमेश, बीयू के कुलसचिव प्रो. बी.के. रवि, कर्नाटक प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष लक्ष्मण और बेंगलूरु जल आपूर्ति व सीवरेज बोर्ड के अध्यक्ष तुषार गिरिनाथ ने भी सम्मेलन में हिस्सा लिया।