दरअसल, मंगल ग्रह के दो उपग्रह हैं। उनमें से जो भीतरी उपग्रह है वह बड़ा है। उसका नाम फोबोस है। दूसरे उपग्रह का नाम डिमोस है। दोनों उपग्रहों की खोज 1877 में हुई थी। मंगलयान ने फोबोस की ही तस्वीर 4200 किमी की दूरी से उतारी है। संरचना के लिहाज से फोबोस को कार्बोनेसियस कॉन्ड्राइट कहा जाता है। ऐसा पदार्थ सिलिकेट सल्फाइड और ऑक्साइड से निर्मित होता है और इसमें बहुत से कार्बनिक रासायन भी शामिल होते हैं। फोबोस की तस्वीर काफी साफ आई है और अनेक क्रेटर देखे जा सकते हैं। इनमें से जो सबसे बड़ा क्रेटर है उसका नाम स्टिकनी है।
भारतीय ताराभौतिकी संस्थान के प्रोफेसर (सेनि) रमेश कपूर ने बताया कि फोबोस की शक्ल नियमित नहीं है। यह एक बड़े आलू के समान दिखता है और इसका आकार है 27 गुणा 22 गुणा 18 किमी है। यह मंगल की सतह से केवल 6 हजार किमी की ऊंचाई से परिक्रमा करता है। इसका रूप काफी काला कहा जाएगा क्योंकि जब सूर्य की रोशनी इसपर पड़ती है उसका केवल 7 फीसदी भाग ही परावर्तित करता है। इसकी सतह पर अनेक गड्ढे हैं जो कालांतर में लघु ग्रहों के टकराव से बने हैं। लघु ग्रहों के आघात से उछले हुए पदार्थ के द्वारा इसकी सतह पर नालियां सी बन गई हैं।
गौरतलब है कि देश का पहला अंतरग्रहीय मिशन मंगलयान 24 सितम्बर को छह साल पूरे कर लेगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने विश्व के इस सबसे सस्ते मिशन (महज 450 करोड़ की लागत) को सिर्फ छह महीने के लिए भेजा था मगर यह मिशन अब भी सक्रिय है। तकनीक रूप से यह मिशन बेहद सफल और परिशुद्धता के अत्यंत करीब रहा। पांच पे-लोड वाले इस मिशन में मीथेन सेंसर फॉर मार्स (एमएसएम) और मार्स कलर कैमरा (एमसीसी) दो बेहद अहम उपकरण है। पहले वर्ष मंगलयान ने 1 टेराबाइट आंकड़े भेजे। पांच वर्षों से अधिक मिशन के दौरान 5 टेराबाइट से अधिक आंकड़े मंगलयान से मिल चुके हैं जिनका विश्लेषण जारी है।
मंगलयान: अहम पड़ाव
5 नवम्बर 2013: पीएसएलवी सी-25 से श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपण
24 सितम्बर 2014: मंगल की कक्षा में प्रवेश
19 जून 2017: मंगल की कक्षा में एक हजार दिन पूरे
24 सितम्बर 2019: मंगल की कक्षा में 5 साल पूरे