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बैंगलोर

Pics: आईटी सिटी में आजादी के आंदोलन के साक्षी स्थलों की सैर

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4 years ago
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नेशनल हाईस्कूल, बसवनगुडी

बसवनगुड़ी के नेशनल हाईस्कूल की स्थापना 1917 में एनी बेंसेंट ने की थी। यह बेंगलूरु का सबसे पुराना स्कूल है जो गुलामी के अंधेरों से लेकर आजादी के दिनों तक का गवाह बना है। यहीं पर स्वतंत्रता सेनानी हनुमंतप्पा नरसिंहैया ने गांधी के भाषणों का कन्नड़ अनुवाद किया था। नरसिम्हैया ने ही नेशनल एजुकेशन सोसायटी की स्थापना की थी जो आज भी स्कूल का संचालन करती है। भारतरत्न से नवाजे गए प्रोफेसर सीएनआर राव व भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान अनिल कुम्बले ने यहीं पर शिक्षा पाई थी।

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गांधी भवन

कुमारा पार्क में कुमार कृपा रोड पर आगे बढ़ते ही चित्रकला परिषद के पहले बाईं तरफ यह जो गांधी भवन है, कभी यहां महात्मा गांधी की मौजूदगी में प्रार्थना के स्वर गूंजते थे। १९२७ में महात्मा गांधी यहां तीन महीने तक रुके थे। उस दौरान सायंकालीन प्रार्थना के साथ ही अन्य सभाओं में भारी संख्या में लोग मौजूद रहते थे। माना जाता है कि यहीं से गांधी ने स्वतंत्रता के प्रति लोगों को जागरूक किया। यहां पर गांधी के कई पत्रों, कुछ तस्वीरों आदि को सहेज कर रखा गया है।

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यहां बहा था विद्यार्थियों का खून

शहर का सबसे भीड़ भरा मैसूर बैंक चौराहा। यहीं अगस्त 1942 में अंग्रेजों ने मासूम विद्यार्थियों पर गोलियां बरसाई थीं। कई विद्यार्थी शहीद हो गए थे और उनका खून धरती में समा गया था। शामन्ना बेटे रंगप्पा, जीवी तिरुमलैय्या, प्रह्लाद शेट्टी, गुंडप्पा नामक विद्यार्थियों का कसूर इतना था कि वे आजादी की मांग कर रहे थे। वर्ष १९७२ तक इन शहीदों की किसी ने सुध नहीं ली। १९७२ में केन्द्र सरकार ने यहां पर शहीद स्मारक बनवाया गया जो आज शनि मंदिर के पीछे छिपा सा नजर आता है। स्मारक उपेक्षा का शिकार है।

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बानप्पा पार्क, कब्बनपेट

यह शहर का सबसे पुराना पार्क है। नाम भले ही पार्क है लेकिन यह वही जगह है जहां अंग्रेजों के खिलाफ विरोध के स्वर गूंजे थे। यहीं इकट्ठा होते थे भारत माता के लाल। फिरंगियों के विरोध में यहां जमकर प्रदर्शन हुए थे और आजादी के दीवानों ने यहां लाठियां भी खाईं थीं। आज भी यहां पर छोटा युद्ध स्मारक है जिसमें देश के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों की यादें सहेजी गई हैं।

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फ्रीडम पार्क
यह जो शेषाद्रि रोड पर फ्रीडम पार्क है, यह तो अपने नाम में ही अपनी पहचान लिए हुए है। दरअसल, यह वर्ष 2000 तक केन्द्रीय कारागार था। अंग्रेजी हुकूमत ने वर्ष 1866 में इसका निर्माण कराया था। आजादी का आंदोलन जब तेज होने लगा तो आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेजी सरकार ने यहीं पर स्वतंत्रता सेनानियों को कैद किया था। जाहिर है, यहां की दीवारें भी आजादी के दीवानों के जज्बे व जुनून की गवाह बनीं। फिलहाल यहां पर एक इन्फार्मेशन कारीडोर, एक संग्रहालय है। पार्क के बाहरी हिस्से एक जगह प्रदर्शनों के लिए रखी गई है।

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