scriptबनने के बाद भी पुलिस कर्मियों को नहीं मिले आवास | Police personnel did not get shelter after building | Patrika News

बनने के बाद भी पुलिस कर्मियों को नहीं मिले आवास

locationबैंगलोरPublished: May 19, 2019 12:58:52 am

जिला पुलिस विभाग के नए आवास गृह का निर्माण हुए डेढ़ साल बीतने के बावजूद पुलिस कर्मियों को अब तक हस्तांतरित नहीं हुए हैं।

बनने के बाद भी पुलिस कर्मियों को नहीं मिले आवास

बनने के बाद भी पुलिस कर्मियों को नहीं मिले आवास


फैज मुंशी
धारवाड़. जिला पुलिस विभाग के नए आवास गृह का निर्माण हुए डेढ़ साल बीतने के बावजूद पुलिस कर्मियों को अब तक हस्तांतरित नहीं हुए हैं। इससे अंग्रेजों के दौर में निर्मित जर्जर मकानों में ही पुलिस कर्मियों के परिवारों को दिन गुजारने पड़ रहे हैं।


कर्नाटक राज्य पुलिस गृह निर्माण निगम की ओर से शहर के पुलिस हैडक्वार्टर परिसर में निर्मित अपार्टमेंट में निचली तथा उसके ऊपर तीन मंजिला अपार्टमेंट तैयार हुए सालों गुजर चुके हैं। हर अपार्टमेंट में 12 मकान हैं। मकानों में विशाल कमरे, हवा और प्रकाश के लिए काफी जगह के साथ सुसज्जित है, परंतु निर्माण के समय से इसमें रहती आई तकनीकी समस्याएं आज भी ऐसी ही बनी हुई हैं। उनको समय पर सही नहीं करने के कारण अभी तक मकानों का हस्तांतरण नहीं हो पाया है।


इस समस्या के कारण अंग्रेजों के दौर में निर्मित छोटे मकानों में ही पुलिस को रहना पड़ रहा है। इन मकानों की छत पर दीमक लगने के कारण जर्जर अवस्था में हैं। पुराने मकानों के दरवाजे टूटे हुए हैं। रहने वालों को उसमें मरम्मत करानी पड़ रही है। मिट्टी की दीवारों में दरारें पडी हुई हैं। पुलिस कर्मियों ने ही सीमेंट लगाकर काम चला रहे हैं। इलेक्ट्रिक स्विच शोचनीय हालत में है। बारिश के मौसम में इन मकानों में पानी घुसता है। इसके कारण पुराने बैनरों व प्लास्टिक से छत को ढंका गया है।


अपनी दुर्दशा को लेकर वहां पर रहने वाले पुलिस कर्मियों के परिवार वालों का कहना है कि घर की हालत देखने पर ऐसा लगता है कि पता नहीं कब गिर जाए? भय में जीवन गुजारना पड़ रहा है। सप्ताह में एक बार पानी आता है। मेंढक़, चूहे आदि घर में घुस आते हैं। घर पर बिल्ली या बंदरों के भागने पर कम से कम 5-6 कवेली टूट जाते हैं। उनको तुरंत सही करवाना पड़ता है। तुरंत नहीं करने पर और समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे मकानों के लिए हम से प्रतिमाह 6 हजार रुपए किराया वसूला जा रहा है।


अपना नाम बताने से इनकार करते हुए एक पुलिसकर्मी ने कहा कि मकानों का आवंटन करने के लिए डेढ़ साल पहले ही हम लोगों ने मांग की थी। घर देना तो दूर हमारे द्वारा लिखे पत्र का जवाब भी नहीं दिया। ऐसा है तो हम उन मकानों के योग्य नहीं हैं क्या? निर्माण किए गए मकानों को खाली रख कर उन्हें जर्जर होने देने के बजाए खस्ताहाल मकानों में रहने वालों को तो देना चाहिए। शीघ्र ही हम लोगों को इस नरक से पार करना चाहिए।

 

इनका कहना है
मकान निर्माण हो गए हैं। वहां पर आने-जाने के लिए सही मार्ग नहीं है। सीवरेज का पानी जाने के लिए व्यवस्था नहीं है। दरवाजे के किनारे लगाए गए टाइल्स में से कुछ उखड़ गए हैं। हमारे बताए अनुसार मकानों का निर्माण नहीं किया गया है। इसके चलते सभी खामियों को सही कर देने के लिएनिगम को पत्र लिखा गया है। सब कुछ सही होने के पश्चात ही हमारे कब्जे में लेकर आवेदनकर्ता पुलिस कर्मियों को मकानों को आवंटन किया जाएगा। संगीता जी., जिला पुलिस अधीक्षक, धारवाड़।

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