यह पहला मौका नहीं है जब पाठ्य पुस्तकों में संशोधन को लेकर विवाद की स्थिति बनी है। खासकर, इतिहास और सामाजिक अध्ययन के पाठ्यक्रमों में। जब केंद्र सरकार ने पाठ्य पुस्तकों में बदलाव किए थे, तब भी विवाद की स्थिति बनी थी। राजनीतिक विचारधारा या समुदायों की मांग के आधार पर पाठ्यक्रमों में बदलाव नहीं किया जाना चाहिए। प्राथमिकता बच्चों को सही तथ्यों से अवगत कराना होना चाहिए। टीपू सुल्तान और हैदर अली को लेकर काफी विवाद रहे हैं मगर दोनों के जिक्र के बिना इतिहास अधूरा ही रहेगा। तमाम असुविधाजनक तथ्यों के बावजूद इतिहास भविष्य के लिए मार्गदर्शक होना चाहिए। अतीत को भुलाया नहीं जा सकता। तथ्यों को जैसा है, वैसा ही पेश किया जाना चाहिए।
यह विडंबना ही है कि सरकारें इतिहास और सामाजिक अध्ययन की पुस्तकों में बदलाव को लेकर जितना रूचि दिखाती हैं, उतना विज्ञान की पुस्तकों के मामले में नहीं होता है जबकि विज्ञान के पाठ्यक्रमों को नियमित तौर पर अद्यतन करना जरूरी है।
यह विडंबना ही है कि सरकारें इतिहास और सामाजिक अध्ययन की पुस्तकों में बदलाव को लेकर जितना रूचि दिखाती हैं, उतना विज्ञान की पुस्तकों के मामले में नहीं होता है जबकि विज्ञान के पाठ्यक्रमों को नियमित तौर पर अद्यतन करना जरूरी है।
ताजा विवाद पाठ्य पुस्तकों में संशोधन या पाठ्यक्रमों में बदलाव लिए मानकों को तय करने की महत्ता को भी रेखांकित करता है। साथ ही बदलावों पर समग्रता में विमर्श भी जरूरी है। पाठ्यक्रमों में बदलाव जल्दबाजी में नहीं किया जाना चाहिए। तथ्यों और सामग्री को सत्यता की कसौटी पर कसने के साथ ही सभी पहलुओं पर विचार भी जरूरी है। विरोधी पाठ्य पुस्तक संशोधन समिति के प्रमुख की अकादमिक योग्यता और समिति की कार्य प्रणाली पर भी सवाल उठा रहे हैं। पाठ्यक्रम तय करने वाले लोगों की विद्वता पर कोई संशय नहीं होना चाहिए। यह तभी संभव है जब वैचारिक और राजनीतिक जुड़ाव के बजाय अकादमिक योग्यता और अनुभव के आधार पर शिक्षाविदों और विशेषज्ञों को दायित्व सौंपा जाए। साथ ही संशोधन और बदलाव के लिए प्रक्रिया तय की जानी चाहिए। बच्चों को राजनीतिक लड़ाई का हथकड़ा नहीं बनाया जाना चाहिए।