scriptकिताबों पर सियासत | Politics over text books | Patrika News

किताबों पर सियासत

locationबैंगलोरPublished: Jun 25, 2022 02:17:47 am

Submitted by:

Jeevendra Jha

ताजा विवाद पाठ्य पुस्तकों में संशोधन या पाठ्यक्रमों में बदलाव लिए मानकों को तय करने की महत्ता को भी रेखांकित करता है

kannada_textbook_lessons.jpg
कुमार जीवेंद्र झा
राज्य में स्कूली पाठ्य पुस्तकों में बदलाव को लेकर उपजा विवाद थम नहीं रहा है। अकादमिक से ज्यादा यह राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। सरकार और विरोधी अपने-अपने रूख पर अडिग हैं। सरकार छपाई लगभग पूरी हो जाने के कारण किताबें वापस लेने की मांग खारिज कर चुकी है। हालांकि, बढ़ते दबाव के कारण कुछ बदलावों को लेकर सरकार ने सहमति जताई है। लेकिन, इससे पटाक्षेप होता नहीं दिख रहा। सवाल यह है कि क्या बदलावों को लेकर सभी पहलुओं पर समग्रता से विचार हुआ था? आपत्तियों को दूर करने में सरकार ने समय रहते दिलचस्पी क्यों नहीं ली? राजनीति हर जगह मौका ढूंढ ही लेती है। यह मामला भी इससे अछूता नहीं है। लेकिन, आरोप-प्रत्यारोप के बीच मूल मसला गौण हो गया है।

यह पहला मौका नहीं है जब पाठ्य पुस्तकों में संशोधन को लेकर विवाद की स्थिति बनी है। खासकर, इतिहास और सामाजिक अध्ययन के पाठ्यक्रमों में। जब केंद्र सरकार ने पाठ्य पुस्तकों में बदलाव किए थे, तब भी विवाद की स्थिति बनी थी। राजनीतिक विचारधारा या समुदायों की मांग के आधार पर पाठ्यक्रमों में बदलाव नहीं किया जाना चाहिए। प्राथमिकता बच्चों को सही तथ्यों से अवगत कराना होना चाहिए। टीपू सुल्तान और हैदर अली को लेकर काफी विवाद रहे हैं मगर दोनों के जिक्र के बिना इतिहास अधूरा ही रहेगा। तमाम असुविधाजनक तथ्यों के बावजूद इतिहास भविष्य के लिए मार्गदर्शक होना चाहिए। अतीत को भुलाया नहीं जा सकता। तथ्यों को जैसा है, वैसा ही पेश किया जाना चाहिए।
यह विडंबना ही है कि सरकारें इतिहास और सामाजिक अध्ययन की पुस्तकों में बदलाव को लेकर जितना रूचि दिखाती हैं, उतना विज्ञान की पुस्तकों के मामले में नहीं होता है जबकि विज्ञान के पाठ्यक्रमों को नियमित तौर पर अद्यतन करना जरूरी है।

ताजा विवाद पाठ्य पुस्तकों में संशोधन या पाठ्यक्रमों में बदलाव लिए मानकों को तय करने की महत्ता को भी रेखांकित करता है। साथ ही बदलावों पर समग्रता में विमर्श भी जरूरी है। पाठ्यक्रमों में बदलाव जल्दबाजी में नहीं किया जाना चाहिए। तथ्यों और सामग्री को सत्यता की कसौटी पर कसने के साथ ही सभी पहलुओं पर विचार भी जरूरी है। विरोधी पाठ्य पुस्तक संशोधन समिति के प्रमुख की अकादमिक योग्यता और समिति की कार्य प्रणाली पर भी सवाल उठा रहे हैं। पाठ्यक्रम तय करने वाले लोगों की विद्वता पर कोई संशय नहीं होना चाहिए। यह तभी संभव है जब वैचारिक और राजनीतिक जुड़ाव के बजाय अकादमिक योग्यता और अनुभव के आधार पर शिक्षाविदों और विशेषज्ञों को दायित्व सौंपा जाए। साथ ही संशोधन और बदलाव के लिए प्रक्रिया तय की जानी चाहिए। बच्चों को राजनीतिक लड़ाई का हथकड़ा नहीं बनाया जाना चाहिए।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो