उन्होंने कहा कि राष्ट्रीयता प्रशासन, देश की नागरिकता तथा सीमा सुरक्षा के मुद्दों के बीच ही घूमती रहती है परन्तु भारत की राष्ट्रीयता कल्पना तक सीमित रह गई है। अधिक से अधिक संवाद होने पर ही हमारे इतिहास के बारे में कई आयामों की कहानी कहने के जरिए बहुत्व तथा विविधता को समझने की जरूरत है।
शिवविश्वनाथन ने एक संस्मरण सुनाते हुए कहा कि पाकिस्तान का दौरा कर वापस लौटने के दौरान वहां की जनता ने पटना के लिए एक पार्सल दिया। उन घटनाओं को याद करते हुए शिवविश्वनाथन ने कहा कि बातचीत या संवाद खुलकर होना है तो बंदिशें लगाना सही नहीं है। पाकिस्तान तथा भारत के बीच की सीमाएं खुलनी चाहिए। शांति स्थापना के लिए इस पहल को शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नोबल पुरस्कार भी शायद मिल सकेगा।
इतने में उपस्थित लोगों ने डॉ. शिवविश्वनाथन के बयान का विरोध कर कहा कि आप केवल एक ही छोर (पक्ष) की विचारधारा प्रस्तुत कर रहे हैं। शांति स्थापित करने के लिए दोनों ओर के लोगों को स्वीकार करना चाहिए। कश्मीरी पंडि़तों की स्थिति के बारे में आप क्यों बात नहीं कर रहे हैं।
संवाद के निर्देशक रंगकर्मी केवी अक्षर ने हस्तक्षेप कर बात जारी रखने की सुविधा की। शिवविश्वनाथन की भाषण समाप्त होते ही और अधिक विरोध व्यक्त हुए। भारतीय सेना की ओर से दुष्कर्म करने के बयान का एक सेवा निवृत्त सैनिक ने सिरे से खारिज किया। लेखिका नीता श्रीनिवास ने कश्मीरी पंडि़तों, मुम्बई हमला, गजऩी का हमला, मुगाल काल के बारे में बात करने की शिवविश्वनाथन से मांग की।
गणेश देविदत पटनायिक ने कहा कि इस सम्मेलन का उद्देश्य ही खुल कर चर्चा करने के लिए मौका देना है। पक्ष-विपक्ष में संवाद होना चाहिए। इसके लिए खुलकर अपने पक्ष को रखने वाले सभी का आभार है कहकर वाद-विवाद को खत्म किया।