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पहले स्वयं अनुशासन का अभ्यास करें

locationबैंगलोरPublished: Oct 02, 2019 07:59:38 pm

आचार्य महाश्रमण ने अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतर्गत अनुशासन दिवस पर कहा कि जीवन में अनुशासन का महत्वपूर्ण स्थान है। अनुशासन दो प्रकार हैं आत्मानुशासन और परानुशासन।

पहले स्वयं अनुशासन का अभ्यास करें

पहले स्वयं अनुशासन का अभ्यास करें

बेंगलूरु. आचार्य महाश्रमण ने अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतर्गत च्अनुशासन दिवसज् पर कहा कि जीवन में अनुशासन का महत्वपूर्ण स्थान है। अनुशासन दो प्रकार हैं आत्मानुशासन और परानुशासन।

अपने आप पर अनुशासन करना आत्मानुशासन है और दूसरों पर अनुशासन करना परानुशासन होता है। दूसरों पर अनुशासन करने के इच्छुक व्यक्तियों को पहले स्वयं पर अनुशासन का अभ्यास करना चाहिए।
आत्मानुशासन के चार प्रकार हैं- मनोनुशासन, वचोनुशासन, कायानुशासन और इंद्रियानुशासन। अपने मन को वश में रखना मनोनुशासन होता है। अपनी वाणी पर अनुशासन रखना वचोनुशासन होता है। आदमी को यह ध्यान देना चाहिए कि वह अनावश्यक रूप से कितनी बार बोलता है और आवश्यकता अनुरूप कितनी बार बोलता है। सत्य कितनी बार बोलता है और असत्य कितनी बार बोलता है। कटु वचन कितनी बार बोलता है और मधुर वचन कितनी बार बोलता है।
राष्ट्रीय संस्कार निर्माण शिविर

आचार्य महाश्रमण की सान्निध्य में एवं जैन श्वेतांबर तेरापंथ महासभा के तत्वावधान में राष्ट्रीय संस्कार निर्माण शिविर का शुभारंभ हुआ। इस अवसर पर आचार्य महाप्रज्ञ शताब्दी वर्ष पर राष्ट्रीय महानगर पत्रिका में आचार्य महाप्रज्ञ के जीवन पर आधारित अंक आचार्य महाश्रमण को भेंट किया गया। अमृतवाणी संरक्षक सुखराज सेठिया, चतुर्मास व्यवस्था समिति उपाध्यक्ष ललित मांडोत व वरिष्ठ श्रावक डालम चंद दुग्गड़ उपस्थित थे।
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