प्रण की कीमत प्राणों से भी ज्यादा-आचार्य महेन्द्रसागर
बैंगलोरPublished: May 27, 2022 07:51:34 am
मुनि देवपद्मसागर की बड़ी दीक्षा
प्रण की कीमत प्राणों से भी ज्यादा-आचार्य महेन्द्रसागर
बेंगलूरु. महावीर स्वामी जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक संघ चामराजपेट में गुरुवार सुबह मुनि देवपद्म सागर की बड़ी दीक्षा का विधान संघ की उपस्थित में पंच महाव्रतों के आरो प्रण का प्रसंग मंगल मुहूर्त में हुआ। मुनि देवपद्मसागर की दीक्षा २१ अप्रेल को कुंथुनाथ जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक संघ श्रीनगर में हुई थी। इस अवसर पर आचार्य महेन्द्रसागर सूरी ने कहा कि जिस प्रकार तलवार की धार पर चलना, अग्नि में तन को जलाना, अंगुली पर मेरु पर्वत को उठाना और “भुजाओं से स्वयंभ्रमण समुद्र को तैरना कठिन है। उसी प्रकार सुकुमार देह को संयम के मार्ग पर चलाना कठिन है। परन्तु निकट भवी या मुक्ति के सच्चे उपासक साधु कभी कष्टों परिषहोंं की परवाह नहीं करते हैं। वे अनन्त जन्मों के सहे हुए घोर कष्टों के मुकाबले में इस एक जन्म के कष्टों की नगण्य मानते हैं तथा दृढता से अपने पथ पर चलते चले जाते हैं। परिणाम यह होता है कि वे अपना कल्याण करने में समर्थ बनते हैं। वास्तव में साधु वे ही कहलाते हैं, जिन्होंने क्रोध, मान, माया और लोभ का त्याग किया है, जिन्होंने बाहर और भीतर के परिग्रह का त्याग कर दिया है। जो भागों से विरक्त होकर अपनी आत्म साधना में मस्त रहते है। पंच महाव्रत आरोपण के दरम्यान आचार्य ने कहा कि देव गुरु और संघ की साक्षी में लिए हुए महाव्रत प्राणांत होने तक भी निभाना चाहिए। अर्थात प्राण भले ही जाए पर प्रण नहीं टूटना चाहिए। कहने का मतलब यही है कि प्रण की कीमत प्राणों से भी ज्यादा है। इस अवसर पर मुनि राजपद्मसागर, मुनि मेरुपद्मसागर व मुनि अर्हमपद्मसागर भी उपस्थित थे।