कई अभिभावकों सहित एसोसिएटेड मैनेजमेंट ऑफ इंग्लिश मीडियम स्कूल्स इन कर्नाटक (केएएमएस) व अन्य बोर्डों का मानना है कि कन्नड़ और अंग्रेजी के साथ हिन्दी, संस्कृत, फ्रेंच या जर्मन आदि भाषाओं का विकल्प भी हो। केएएमएस ने इसके लिए सरकार से सिफारिश की है। कई अभिभावकों ने नियम को न्यायालय में चुनौती देने की बात कही है। तो कुछ अभिभावकों को नए नियम को लेकर कोई आपत्ति नहीं है।
एक अभिभावक का मानना है कि अन्य राज्यों के बच्चों को कन्नड़ भाषा सीखने से आगे चलकर फायदा ही होगा। विशेषकर उन्हें जो कर्नाटक में ही बसे हैं या बसना चाहते हैं। जबकि एक अन्य अभिभावक के अनुसार अन्य राज्यों के बच्चे कन्नड़ में अच्छे अंक हासिल नहीं कर सकेंगे। इससे बच्चों का प्रदर्शन खराब होगा।
एक आइसीएसइ स्कूल के शिक्षक के अनुसार कक्षा एक से आठ तक कन्नड़ द्वितीय भाषा के रूप में पढ़ाई जा सकती है। लेकिन कक्षा नौ से बच्चों के पास द्वितीय भाषा चुनने का विकल्प होना चाहिए। बोर्ड परीक्षा में कन्नड़ विषय की अनिवार्यता लागू नहीं हो तो बेहतर होगा। एक प्रतिष्ठित सीबीएसइ स्कूल बोर्ड के सदस्य ने भी तीन भाषा-नीति को बेहतर विकल्प बताया है।
केएएमएस के महासचिव डी. शशिकुमार ने कहा कि सरकारी निर्देशों का पालन करेंगे। लेकिन सरकार को चाहिए कि वह तीन-भाषा नीति को प्राथमिकता दे। इससे अन्य राज्यों के बच्चों को आसानी होगी।
बच्चों का व्यक्तित्व निखरेगा
लोक शिक्षण विभाग के आयुक्त डॉ. केजी जगदीश ने कहा कि प्रदेश सरकार सभी स्कूलों से नियमों के पालन किए जाने की उम्मीद करती है। इस नियम का उद्देश्य बच्चों को एक नई भाषा सिखाना और स्थानीय भाषा में संवाद करने में सक्षम बनाना है। बच्चे जब अन्य विदेशी भाषाएं सीख सकते हैं तो स्थानीय भाषा क्यों नहीं। बच्चे कई भाषाएं सीखने में सक्षम होते हैं। अतिरिक्त भाषाओं से बच्चों का व्यक्तित्व निखरेगा।