महामारी के चलते बड़ी संख्या में लोग अब गांव जाकर वर्क फ्रॉम होम के तहत कार्य कर रहे हंै। मलनाडु तथा तटीय कर्नाटक के उडुपी, दक्षिण कन्नड़ तथा उत्तर कन्नड़ जिलों में आज भी कई गांव ऐसे हैं जहां इंटरनेट नहीं है। लिहाजा वे तहसील मुख्यालयों में किराए का मकान लेकर रहने पर मजबूर हैं।
मैसूरु तथा बेंगलूरु शहर की अनेक आईटी कंपनियों के कर्मचारी अब अपने गांव जाकर वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं। गांवों में इंटरनेट बिजली की आंख मिचौली सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। ऐसे लोग अब स्थिति सामान्य होने का इंतजार कर रहे हंै ताकि फिर शहर लौटें। इस समस्या के कारण गांवों में ऑनलाइन कक्षाएं चलाना भी संभव नहीं हो रहा है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस), स्वास्थ विभाग की सेवाएं, ऑनलाइन आवेदन करना संभव नहीं होने के कारण लोग परेशान हैं।
दूसरे राज्यों से कम टॉवर
अन्य राज्यों की तुलना में कर्नाटक में मोबाइल टॉवर्स की संख्या कम होने के कारण इंटरनेट की समस्या है। सूत्रों के अनुसार देश में मोबाइल टॉवर्स की संख्या 5 लाख 89 हजार है। महाराष्ट्र में 45 हजार 758, आंध्र प्रदेश में 44 हजार 736, बिहार में 43 हजार 308 टॉवर की तुलना में कर्नाटक में 38 हजार 410 टॉवर्स हैं।
दूसरे राज्यों से कम टॉवर
अन्य राज्यों की तुलना में कर्नाटक में मोबाइल टॉवर्स की संख्या कम होने के कारण इंटरनेट की समस्या है। सूत्रों के अनुसार देश में मोबाइल टॉवर्स की संख्या 5 लाख 89 हजार है। महाराष्ट्र में 45 हजार 758, आंध्र प्रदेश में 44 हजार 736, बिहार में 43 हजार 308 टॉवर की तुलना में कर्नाटक में 38 हजार 410 टॉवर्स हैं।
शहरों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में ऑप्टिकल फाइबर केबल (ओएफसी) का नेटवर्क मजबूत नहीं होने से नेटवर्क अच्छा नहींं है। शहरों में उपभोक्ताओं की संख्या अधिक होने के कारण मोबाइल कंपनियां ग्रामीण क्षेत्रों के नेटवर्क पर अधिक ध्यान नहीं दे रही है। यही इस समस्या की जड़ है।
केंद्र तथा राज्य सरकार डिजिटल क्रांति का दावा कर रही है लेकिन यह क्रांति राज्य के कुछ हि जिलों तक सीमित है। बेंगलूरु, मैसूरु तथा आस-पास के जिलों में इंटरनेट का नेटवर्क बेहतर है लेकिन अन्य राज्यों में ऐसी स्थिति नहीं है। हैदराबाद-कर्नाटक तथा उत्तर कर्नाटक के कई जिलों में सैकड़ों गांवों को इंटरनेट संपर्क का इंतजार है।