बहुद्देश्शीय सेवाओं के लिए उपयोगी
उन्होंने कहा कि सारस मैक-2 एयर टैक्सी, वायु अनुसंधान एवं सर्वेक्षण, विशेष परिवहन, आपदा प्रबंधन, सीमा पर गश्त, तटरक्षक, एम्बुलेंस और अन्य सामुदायिक सेवाओं जैसे विभिन्न कार्यों के लिए बेहद उपयोगी साबित होगा। इसके अलावा सरकार की उड़ान योजना के अंतर्गत यात्री सम्पर्क के लिए यह एक आदर्श विमान है। इसका सफल विकास भारत में नागर विमानन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना होगी। उन्होंने एएसटीई के कमांडेंट और परीक्षण चालक दल के सदस्यों को प्रशस्ति पुरस्कार देने की भी घोषणा की।
एचएएल करेगा उत्पादन
सारस के सैनिक संस्करण के उत्पादन के लिए हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) की पहचान की गई है, जबकि असैनिक संस्करण का उत्पादन एक निजी उद्योग को दिया जाएगा। भारत को अगले दस वर्ष में असैनिक और सैनिक संस्करण के लिए इस प्रकार के 120 से 16 0 विमानों की आवश्यकता है।
अनुमानित लागत 6 00 करोड़
केंद्रीय वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के महानिदेशक डा. गिरीश साहनी ने कहा कि सारस मैक-2 के विकास और उसके सत्यापन पर 6 00 करोड़ रूपए खर्च आएगा और इसमें करीब 2 से 3 वर्ष का समय लगेगा। सीएसआईआर-एनएएल के निदेशक जितेंद्र जे. जाधव ने कहा कि इस विमान के विकास पर अभी तक लगभग 350 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। एयर वाइस मार्शल संदीप सिंह ने कहा कि भारतीय वायु सेना परीक्षण करने और उसके बाद स्वदेश में डिजाइन और निर्मित पहले हल्के परिवहन विमान को शामिल करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि भारतीय वायु सेना इस कायक्रम को पूरा सहयोग दे रही है और सारस के नए संस्करण के डिजाइन और विन्यास का प्रयोग जल्दी ही पूरा हो जाएगा।
उन्होंने कहा कि सारस मैक-2 एयर टैक्सी, वायु अनुसंधान एवं सर्वेक्षण, विशेष परिवहन, आपदा प्रबंधन, सीमा पर गश्त, तटरक्षक, एम्बुलेंस और अन्य सामुदायिक सेवाओं जैसे विभिन्न कार्यों के लिए बेहद उपयोगी साबित होगा। इसके अलावा सरकार की उड़ान योजना के अंतर्गत यात्री सम्पर्क के लिए यह एक आदर्श विमान है। इसका सफल विकास भारत में नागर विमानन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना होगी। उन्होंने एएसटीई के कमांडेंट और परीक्षण चालक दल के सदस्यों को प्रशस्ति पुरस्कार देने की भी घोषणा की।
एचएएल करेगा उत्पादन
सारस के सैनिक संस्करण के उत्पादन के लिए हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) की पहचान की गई है, जबकि असैनिक संस्करण का उत्पादन एक निजी उद्योग को दिया जाएगा। भारत को अगले दस वर्ष में असैनिक और सैनिक संस्करण के लिए इस प्रकार के 120 से 16 0 विमानों की आवश्यकता है।
अनुमानित लागत 6 00 करोड़
केंद्रीय वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के महानिदेशक डा. गिरीश साहनी ने कहा कि सारस मैक-2 के विकास और उसके सत्यापन पर 6 00 करोड़ रूपए खर्च आएगा और इसमें करीब 2 से 3 वर्ष का समय लगेगा। सीएसआईआर-एनएएल के निदेशक जितेंद्र जे. जाधव ने कहा कि इस विमान के विकास पर अभी तक लगभग 350 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। एयर वाइस मार्शल संदीप सिंह ने कहा कि भारतीय वायु सेना परीक्षण करने और उसके बाद स्वदेश में डिजाइन और निर्मित पहले हल्के परिवहन विमान को शामिल करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि भारतीय वायु सेना इस कायक्रम को पूरा सहयोग दे रही है और सारस के नए संस्करण के डिजाइन और विन्यास का प्रयोग जल्दी ही पूरा हो जाएगा।
नव विकसित सारस की खूबियां
-हाई कू्रज स्पीड
-शार्ट टेक-ऑफ एवं लैंडिंग
-केबिन मेें काफी कम शोर
-उच्च और गर्म एयरफील्ड से संचालन की क्षमता
-दबावयुक्त केबिन
-आधे तैयार एयरफील्ड से भी परिचालन की क्षमता
-कम अधिग्रहण और रखरखाव लागत
-हाई कू्रज स्पीड
-शार्ट टेक-ऑफ एवं लैंडिंग
-केबिन मेें काफी कम शोर
-उच्च और गर्म एयरफील्ड से संचालन की क्षमता
-दबावयुक्त केबिन
-आधे तैयार एयरफील्ड से भी परिचालन की क्षमता
-कम अधिग्रहण और रखरखाव लागत