मुनि ने कहा कि उम्र से बड़ा या छोटा होना हमारे वश की बात नहीं, परंतु सर्वगुण संपन्न बनना हमारे हाथ में हैं। ज्येष्ठ होना बड़ी बात नहीं, श्रेष्ठ बनना विशेष बात है। श्रेष्ठ बन नहीं पाए तो बड़ा होना काम का नहीं। गौतम स्वामी के आगमन पर केशी श्रमण गौतम स्वामी के अनुरूप आदर और सत्कार करते हुए पांच प्रकार के आसन प्रदान करते हैं।
व्यवहार धर्म की जानकारी देते हुए मुनि ने कहा सेवा, आदर, सत्कार हमेशा सामने वाले के यथायोग्य होना चाहिए। किसी भी व्यक्ति को कोई कार्य सौंपने से पूर्व उससे पूछें कि क्या वह इसे कर सकता है।
अयोग्य को कार्य सौंपने पर वह उसे बोझ समझकर करेगा। कार्य बोझ से नहीं बल्कि तब सुंदर बनता है जब वह खुशी-खुशी संपन्न होता है। किसी के प्रति अपनी बात रखनी हो तो संक्षिप्त में रखें और गुण निष्पन्न शब्दों का प्रयोग करें। केशी और गौतम में संवाद होता है। उस संवाद को सुनने के लिए न केवल मानव बल्कि देव भी उपस्थित होते हैं। जहां सत्संग होता है, परमात्मा की कथा होती है वहां अदृश्य रूप से देव उपस्थित रहते ही हैं।
चेलना की कथा सुनाते हुए मुनि ने कहा कि गृहस्थ का यह कर्तव्य है कि वह माता-पिता की सेवा, भक्ति, आदर करें। वर्तमान में आदमी धन कमाने में इतना व्यस्त हो गया है कि अपने परिवार और आत्मा की तरफ उसका ध्यान ही नहीं जाता। कितना अच्छा हो जाए यदि इंसान पैसों के समान अपनों की भी सुरक्षा करना सीख जाए।