scriptमानव जीवन का रक्षा कवच है वज्रपंजर स्तोत्र | Protecting human life is the armor of Lord Vajpangar | Patrika News

मानव जीवन का रक्षा कवच है वज्रपंजर स्तोत्र

locationबैंगलोरPublished: Sep 21, 2018 06:52:36 pm

Submitted by:

Ram Naresh Gautam

बिना बीजाक्षर के यह महामंत्र अपने आप में प्रभावशाली और चमत्कारी है

dharma

मानव जीवन का रक्षा कवच है वज्रपंजर स्तोत्र

बेंगलूरु. राजाजीनगर स्थानक में साध्वी संयमलता, साध्वी अमितप्रज्ञा, साध्वी कमलप्रज्ञा, साध्वी सौरभप्रज्ञा के सान्निध्य में महामंगलकारी वज्रपंजर स्तोत्र का अनुष्ठान संपन्न हुआ। इस अवसर पर साध्वी संयमलता ने कहा कि नवकार मंत्र शाश्वत मंत्र है। बिना बीजाक्षर के यह महामंत्र अपने आप में प्रभावशाली और चमत्कारी है। वज्रपंजर स्तोत्र आत्मा व शरीर का रक्षा कवच है। प्रारंभ में मिलाप धारीवाल, अजय दुग्गड़, सुकनराज बागरेचा, माणकचंद बागमार, पंकज रांका ने सजोड़े मंगल कलश की स्थापना की।
साध्वी अमितप्रज्ञा, साध्वी कमलप्रज्ञा, साध्वी सौरभप्रज्ञा ने मंत्र का सामूहिक गान करवाया। रेखा सिंघवी ने 25 उपवास, सशीला पिचोलिया ने 15 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। सुमन धोका के 15 उपवास पर संघ द्वारा माला, चुनरी व रजत स्मृति चिह्न भेंटकर बहुमान किया गया। सिंधनूर संघ के 80 सदस्यों ने साध्वीवृंद के दर्शन का लाभ लिया।

अधोगति की ओर बह रही है मनुष्य की ऊर्जा
विल्सन गार्डन स्थित शांतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में साध्वी विनीव्रता ने कहा कि सदियो से मनुष्य की ऊर्जा अधोगति की ओर बह रही है।अभ्यास नीचे जाने का है। निरंतर अधोपतन हो रहा है। जीवन की अग्नि नीचे की ओर बह रही है। उन्होंने कहा कि अग्नि को ऊपर ले जाने के लिए साधन नहीं साधना चाहिए, यंत्र नहीं मंत्र चाहिए। पदार्थ नहीं परमात्मा चाहिए। ध्यानाग्नि कुछ नहीं मांगती।
अंतरंग बहिरंग परिग्रहों से मुक्त होने के बाद ही ध्यानाग्नि प्रज्वलित होती है। हमारी आदतों ने स्वभाव को दबा दिया है। आदते हमें दबाए हुए हैं। आदतों के पत्थर चेतना के ऊपर पर्वतों से खड़े हुए हैं। एक एक आदत हमें गुलाम बनाए हुए हैं। सम्यक तप का अर्थ है। स्वभाव को खोजो सम्यक तप का अर्थ है। स्वभाव में जियो।
जाप से तेजवान बनता है मनुष्य
जयमल जैन संघ के तत्वावधान में जय परिसर महावीर धर्मशाला में जयधुरन्धर मुनि ने जय जाप जपने का महत्व समझाते हुए कहा कि इससे मनुष्य के राज और काज दोनों में तेज रहता है। उन्होंने कहा कि संयमी साधकों के आभामंडल पर विशेष ओज और तेज व्याप्त रहता है ओर जो भी उनके दर्शन करते हुए उनके सान्निध्य में रहता है, उसके स्वयं का भी तेज बढ़ जाता है। तेजस्वी बनने के लिए जप और तप जरुरी है। जिस प्रकार तपे बिना सोने में भी चमक नहीं आ सकती उसी प्रकार तपस्या के बिना चेहरे पर कांति नहीं आ सकती। जयपुरन्दर मुनि ने आचार्य जयमल के जीवन चारित्र पर प्रकाश डाला। आचार्य जयमल के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में 21 से 23 सितम्बर तक 811 सामूहिक तेले तप का आयोजन होगा।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो