केपीएमटीसीसी सरकार के उस आदेश का विरोध कर रहा है जिसमें शिक्षा विभाग ने अभिभावकों को ट्यूशन फीस में 30 फीसदी छूट देने और किसी अन्य तरह का शुल्क नहीं लेने के निर्देश दिए हैं।
केपीएमटीसीसी के संयोजक डी. शशिकुमार ने सरकार के आदेश को एकतरफा बताते हुए इसे वापस लेने की मांग की। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के कारण स्कूलों की आर्थिक स्थिति पहले से ही खराब है। सरकार ने महामारी के दौरान निजी गैर अनुदानित स्कूलों के लिए कुछ नहीं किया। फीस में कटौती का हक सरकार को नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत दाखिल बच्चों की प्रतिपूर्ति शुल्क का भुगतान लंबित रखा है। वर्ष 2019-20 के लिए भुगतान जल्द से जल्द हो। इससे स्कूल संचालकों को राहत मिलेगी।
राहत पैकेज की मांग
केपीएमटीसीसी के अध्यक्ष पुट्टण्णा ने कर्मचारियों को वेतन देने के लिए सरकार से शिक्षक कल्याण फंड से राहत पैकेज की मांग की। उन्होंने आरोप लगाया कि अनापत्ति प्रमाण पत्र और फिटनेस प्रमाण पत्र नियम में बदलाव कर स्कूल संचालकों को परेशान किया जा रहा है। इससे स्कूलों पर लाखों रुपए का अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ेगा।
पहली से पांचवी कक्षा के लिए खुले स्कूल
संगठन का कहना है कि फीस को लेकर शिक्षा मंत्री के बयानों से अभिभावकों में भी असमंजस की स्थिति है। अभिभावक न तो फीस नहीं जमा कर रहे हैं और ना ही दाखिला करवा रहे हैं। सरकार को चाहिए कि पहली से पांचवी कक्षा के लिए भी स्कूल जल्द से जल्द खोले। आंगनवाड़ी पहले से ही शुरू हो चुके हैं। उन्होंने स्कूल वाहन पर बीमा और बैंकों से ब्याज दर में छूट सहित बिजली बिल, पानी बिल, पेशा कर, सेवा कर और भविष्य निधि आदि में छूट की मांग भी की। शिक्षा विभाग गैर अनुदानित स्कूलों के शिक्षकों को भी स्वास्थ्य बीमा सुनिश्चित करने की अपील की।
अभिभावक संघ भी मुखर
इस बीच, निजी स्कूल अभिभावक संघ ने छूट में कटौती वापस लेने या उसमें कमी करने पर सड़कों पर उतरने की चेतावनी दी है।
निजी स्कूल अभिभावकों के समूह वॉइस ऑफ पैरेंट्स ने केपीएमटीसीसी के प्रदर्शन की आलोचना करते हुए कहा कि ज्यादातर निजी स्कूलों ने अपने 25 फीसदी शिक्षकों को नौकरी से निकाल दिया है। शेष 75 फीसदी को 50 फीसदी से भी कम वेतन दे रहे हैं।
कोरोना महामारी के कारण अभिभावक भी आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। कई परिवारों में माता-पिता दोनों की या तो नौकरी चली गई है या कम वेतन पर काम कर रहे हैं। बावजूद इसके अभिभावकों ने बच्चों को ऑनलाइन कक्षा से वंचित नहीं रखा। ऑनशिक्षा के लिए कम्प्यूटर, लैपटॉप, स्मार्टफोन और इंटरनेट आदि की व्यवस्था की। संगठन कहा कि निजी स्कूलों को ऑडिट रिपोर्ट के साथ ही फीस की संरचना भी शिक्षा विभाग के पास जमा करनी चाहिए।