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आज ही तंबाकू की लत को छोड़ें, जिंदगी को तबाह होने से बचाएं

locationबैंगलोरPublished: May 31, 2023 10:45:57 am

Submitted by:

Nikhil Kumar

– World No Tobacco Day आज : गर्भस्थ शिशु तक चपेट में, कर्नाटक के करीब तीन करोड़ लोगों को लत

 World No Tobacco Day 2022: आज ही तंबाकू की लत को छोड़ें, जिंदगी को तबाह होने से बचाएं

World No Tobacco Day 2022: आज ही तंबाकू की लत को छोड़ें, जिंदगी को तबाह होने से बचाएं

निखिल कुमार

Tobacco तो एक ही होता है मगर अलग-अलग स्वरुपों में उसका सेवन करने वाले के साथ-साथ उसके पूरे परिवार को तबाह कर देता है। तंबाकू के सेवन होने वाले कैंसर के अलग-अलग तरीके से लोगों को प्रभावित करता है। चिकित्सकों का कहना है कि ध्रूमपान करने वालों के लिए अंत में पछताने के अलावा कुछ नहीं बचता है। इच्छाशक्ति, दृढ़ निश्चय और चिकित्सकीय मदद से तंबाकू के सेवन से छुटकारा पाया जा सकता है। आंध्र प्रदेश के बाद Karnataka देश में दूसरा बड़ा तंबाकू उत्पादक राज्य है।

पैसिव स्मोकिंग बाल मृत्यु दर का प्रमुख कारण

पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. अनिल कुमार एस. ने बताया कि Passive Smoking दुनिया भर में बाल मृत्यु दर का प्रमुख कारण है। महिलाओं का धूम्रपान करना, विशेषकर गर्भावस्था में भ्रूण विकास को प्रभावित करता है। गर्भावस्था में धूम्रपान (smoking during pregnancy) करने वाली महिलाओं के बच्चे धूम्रपान नहीं करने वाली महिलाओं के मुकाबले कम वजनी, छोटे और नाजुक होते हैं। शारीरिक प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है। सिगरेट के धुएं के संपर्क में आने से कई खतरनाक रसायन फेफड़े के जरिए शरीर में पहुंच जाते हैं, जो बच्चे और गर्भनाल को क्षति पहुंचाते हैं।

थर्ड हैंड स्मोकिंग

बीड़ी-सिगरेट ही नहीं, इसके बट और राख भी सेहत के लिए खतरनाक हैं। इन्हें Third Hand Smoking की श्रेणी में रखा गया है। वातावरण में Cigarette और बीड़ी के अवशेषों में 250 से ज्यादा खतरनाक रसायन स्मोकिंग करने के कई घंटों तक रहते हैं। बंद कार, एश ट्रे, घर, कार्यालय और वहां मौजूद फर्नीचर आदि थर्ड हैंड स्मोकिंग क्षेत्र बन जाते हैं। यहां तक कि त्वचा, बाल और कपड़े भी कई बीमारियों के वाहक बन जाते हैं।

दो पाउच में बंटा गुटखा, हाथों पर मल रहे कैंसर

कहने को तो राज्य सरकार ने गुटखे की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है, लेकिन गुटखे पर रोक लगी तो व्यापारियों ने इसका भी तोड़ निकाल लिया। अब सादा पान मसाला और तंबाकू के पाउच अलग-अलग बिक रहे हैं। लोग बड़े ही आराम से इन्हें खरीदते हैं और दोनों पाउच को मिला कर गुटखा बना लेते हैं। अलग-अलग पाउचों पर सरकार का बैन लागू नहीं होता है। धड़ल्ले से ये कारोबार फल-फूल रहा है। दुकानदारों का कहना है कि गुटखे की बिक्री बंद होने से उनके धंधे पर कोई खास असर नहीं पड़ा है।

गुटखा से भी ज्यादा खतरनाक

ओरल कैंसर (oral cancer) रोग विशेषज्ञ डॉ. यू. एस. विशाल राव का कहना है कि पहले गुटखा खाने वाले लोग अब पान मसालों के साथ तंबाकू मिलकर खा रहे हैं। यह आदत गुटखा खाने से भी ज्यादा खतरनाक है क्योंकि Gutkha बनाने वाली कंपनियां एक सीमित मात्रा में पान मसाले में तंबाकू मिलाती हैं। लोग जब पान मसाला और तंबाकू को खुद मिलाते हैं तो वे ज्यादा मात्रा में तंबाकू और कम मात्रा में मसाला मिलाते हैं।

 

मुख कैंसर के 90 प्रतिशत मरीज

किदवई मेमोरियल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑन्कोलॉजी के एक अध्ययन के अनुसार ओरल कैंसर के करीब 90 फीसदी मरीजों ने तंबाकू का सेवन किया होता है। किदवई में हेड एंड नेक कैंसर विभाग के पूर्व प्रमुख डॉ. अशोक शेनॉय बताते हैं कि कैंसर के मामलों में करीब 40 फीसदी से ज्यादा मामले ओरल कैंसर के होते हैं। युवा पीढ़ी इससे ज्यादा प्रभावित है। कई ऐसे हैं, जो तंबाकू सेवन व धूम्रपान के कारण कैंसर से किसी तरह बच तो गए, लेकिन अब वे जिंदा रह कर भी हर रोज मरने को मजबूर हैं।

बच्चों की सेहत को धुएं में उड़ा रहे कई अभिभावक

जिन बच्चों के अभिभावक बच्चों के आसपास धूम्रपान करते हैं उन्हें सावधान हो जाने की जरूरत है। चिकित्सकों का कहना है कि बच्चे तेजी से पैसिव स्मोकिंग (सेकेंड हैंड स्मोकिंग) का शिकार हो रहे हैं। अभिभावकों के बीड़ी और सिगरेट के कश से निकलने वाला कैंसर कारक खतरनाक धुआं बच्चों के लिए रोजाना 60 से ज्यादा बीड़ी-सिगरेट पीने के बराबर है। ऐसे में बच्चे कई गंभीर बीमारियों के शिकार हो सकते हैं। पैसिव स्मोकिंग के माहौल में रह रहीं गर्भवती महिलाएं समय से पहले शिशु को जन्म दे सकती हैं।

उम्मीद : रंग ला रही निम्हांस की तंबाकू क्विटलाइन सेवा

राष्ट्रीय मानसिक आरोग्य व स्नायु विज्ञान संस्थान (निम्हांस) की तंबाकू क्विटलाइन सेवा रंग ला रही है। Nimhans की निदेशक डॉ. प्रतिमा मूर्ति ने बताया कि हजारों लोग तंबाकू की लत छोड़ चुके हैं। विभिन्न राज्यों से हर वर्ष लाखों लोग फोन कर तंबाकू छोड़ने की इच्छा जताते हैं। ज्यादातर कॉलर 20-35 आयु वर्ग हैं। इनमें 10% कॉलर ही महिलाएं हैं। कर्नाटक के करीब 29% कॉलर परामर्श ले रहे हैं। एक-तिहाई कॉलर तंबाकू छोड़ चुके हैं। करीब 41% कॉलरों ने सिगरेट, Bidi आदि के इस्तेमाल की बात मानी। करीब 12% कॉलर धुंआ युक्त और धुंआ रहित तंबाकू के आदि हैं। कॉलरों की औसत उम्र 27 वर्ष है। आंकड़े बताते हैं कि युवा कामकाजी वयस्क तंबाकू छोड़नेे को अधिक इच्छुक हैं। जिनके लिए क्विटलाइन सेवा काफी नहीं है उन्हें निकटतम तंबाकू निषेध क्लिनिक भेजते हैं।

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