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रेबीज – आज भी घरेलू उपचार या झाड़-फूंक के भरोसे

locationबैंगलोरPublished: Jan 20, 2020 08:33:18 pm

Submitted by:

Nikhil Kumar

रेबीज से मौत में 75 फीसदी गिरावट। फिर भी ग्रामीण इलाकों में जागरूकता की कमी चुनौती

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50 फीसदी मामले कर्नाटक और पश्चिम बंगाल से

बेंगलूरु.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूूएचओ) के अनुसार भारत में रेबीज से होने वाली मौतों में 75 फीसदी तक गिरावट हुई है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में रेबीज को लेकर चिकित्सकों, नर्सों और लोगों में भी जागरूकता की कमी बड़ी चुनौती है। मरीज के अस्पताल पहुंचने तक काफी देर हो जाती है। कई लोग आज भी झाड़-फूंक के भरोसे हैं। गत तीन वर्षों में कर्नाटक में रेबीज से 60 लोग मरे हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल 2018 के अनुसार देश में सामने आने वाले रेबीज के 50 फीसदी मामले कर्नाटक और पश्चिम बंगाल से होते हैं।

केंपेगौड़ा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (किम्स) के डॉ. रमेश एनआर के अनुसार कुछ वर्ष पहले 20 हजार मौतों की तुलना में अब करीब पांच हजार लोगों की रेबीज से होती है। लेकिन कई मामले उजागर नहीं होते हैं। ऐसा लोगों के चिकित्सक के पास नहीं पहुचंने या फिर रेबीज को पहचानने में चिकित्सकों की विफलता के कारण होता है।

रोगाणुरोधक दवा की पर्याप्त व्यवस्था नहीं
डॉ. रमेश की अगुवाई में किम्स अध्ययन दल ने पाया कि 35 में से 19 क्लिनिकों में कुत्ते के काटे जाने के बाद घाव को साबुन से धोने और रोगाणुरोधक दवा की पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी। जब कि ऐसे मामलों में यह प्राथमिक उपचार है। बेंगलूरु, बिहार, केरल, मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश और मणिपुर में किए गए इस अध्ययन में 27 सरकारी और आठ निजी क्लिनिकों को शामिल किया गया था। 19 क्लिनिकों में एंटीवायरस रेबीज इम्युनोग्लोबिन (आरआइजी) वैक्सीन उपलब्ध नहीं थी। कर्नाटक में ऐसे कई प्राथमिक उपचार केंद्र हैं, जहां वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। जहां है भी तो स्वास्थ्यकर्मियों को टीके लगाने की सही विधि पता नहीं होती। कई मामलों में ग्रामीण अस्पताल टिटनेस का टीका लगा छोड़ देते हैं। मरीज और परिजन भी उपचार प्रोटोकॉल से अनजान होते हैं।

मांसपेशियों में टीका गलत
डॉ. रमेश बताते हैं कि प्रोटोकॉल के अनुसार घाव को पानी और साबुन से अच्छी तरह धोने के बाद घाव के पास आरआइजी टीका लगाया जाना चाहिए। लेकिन कई चिकित्स कमर की मांसपेशियों में टीका लगा देते हैं। इसके बाद एंटी रेबीज वैक्सीन का कोर्स चलता है।

चपेट में मस्तिष्क
आइसोलेशन अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. अंसार अहमद के अनुसार कई मामलों में और विशेषकर ग्रामीण इलाकों के लोग घरेलू उपचार या फिर झाड़-फूंक पर निर्भर होते हैं। अस्पताल पहुंचने तक काफी देर होने से स्थिति लाइलाज हो जाती है। नर्वस सिस्टम से होते हुए वायरस मस्तिष्क को चपेट में ले लेता है।

काटे जाने के दिन लगे टीका
डब्लूएचओ के अनुसार कुत्ते के काटने के दिन ही पहला एंटी रेबीज टीका लगाया जाना चाहिए। वायरस के प्रभाव को खत्म करने के लिए जहां कुत्ते ने काटा है, वहां सात दिन के दरम्यान एंटीवायरस रेबीज इम्युनोग्लोबिन के तीन टीके लगने चाहिए। डब्लूएचओ ने वर्ष 2030 तक रेबीज से शून्य मौत का लक्ष्य रखा है।

बीमारी के बाद बचाना मुश्किल
एक बार जब रेबीज के लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं, तो मरीज को बचाया नहीं जा सकता है। इसके उपचार के लिए एंटी वायरल दवा अब तक विकसित नहीं हुई है, लेकिन थोड़ी सतर्कता बरती जाए और कुत्ते के काटने के फौरन बाद मरीज को उचित उपचार मिले तो इससे बचा जा सकता है।

ज्यादातर मामले कुत्ते या बिल्ली के कारण
रेबीज की बीमारी कुत्ते, बिल्ली, बंदर, चमगादड़, गाय-भैंस, चूहों, लोमड़ी और भेडिय़ा जैसे जानवरों से होती है। भारत में ज्यादातर रेबीज के मामले कुत्ते या बिल्ली के काटने से सामने आते हैं।

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