राजस्थानी समाज ने हाली अमावस्या मनाई
मारवाड़ की परम्परा को किया जीवंत

मैसूरु. राजस्थानी लोगों की ओर से हाली अमावस्या के उपलक्ष में मारवाड़ की परम्परा को जीवंत रखते हुए बाजरे का खीच, गुड़ व गेहूं के आटे की गलवाणी बना कर खाई गई।
राजस्थान राजपूत समाज के सलाहकार नरपत सिंह दहिया ने बताया कि राजस्थान में किसान वर्ग द्वारा हाली अमावस्या के दिन गुड़, धाणा की मान मनुहार कर, मुंह मीठा करने के बाद अनाज को एक पात्र में रख कर आगामी फसलों की उपज का शगुन देखा जाता है।
तालाब से गाद निकाल कर जरूरत के हिसाब से सकोरा बना कर उसमें अलग-अलग प्रकार का अनाज डालकर सकोरे को पानी से पूरा भरा जाता है। जो सकोरा पहले बिखरता है।
शकुन के अनुसार उस फसल की बंपर पैदावार होने का अनुमान लगाया जाता है। इस अवसर पर गणपत सिंह दहिया, भान सिंह दहिया, विजय सिंह, वाग सिंह राठोड़ ,भान सिंह चौहान, महेन्द्र सिंह आदि मौजूद रहे।
पशु-पक्षियों को डाला दाना
मैसूरु. हेल्पिंग हैंड्स की ओर से जीव रक्षा के तहत मैसूरु महल के आसपास श्वानों एवं पक्षियों को रोटियां, बिस्किट, ब्रेड आदि प्रतिदिन डालने की शुरुआत की गई। इस मौके पर संस्था के अध्यक्ष महावीर खाबिया, मंत्री आनंद पटवा, कोषाध्यक्ष राजन बाघमार,शिक्षण संघ अध्यक्ष बुधमल बाघमार,सदस्य मनोहर सांखला,प्रकाश गांधी आदि मौजूद रहे।
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