अन्य राज्यों से लौटे लोगों की कोई सूची नहीं
मध्य निषेध आंदोलन की राज्य संयोजक विद्या पाटिल ने बताया कि रायचुर जिले के चार ग्राम पंचायतों में किए गए एक सर्वेक्षण में पता चला कि ग्राम पांचायतों के पास बेंगलूरु, हैदराबाद, पुणे और तेलंगाना सहित अन्य राज्यों से लौटे लोगों की कोई सूची नहीं है। ऐसे लोगों की जांच नहीं हो रही है। कोरोना की पहली लहर के दौरान ऐसा नहीं था। बीते एक सप्ताह के दौरान विभिन्न गांवों में करीब 20 लोगों की मौत हुई है। कोविड से मौत होने की आशंका है। लेकिन इन लोगों की कभी कोविड जांच नहीं हुई। इसलिए प्रदेश सरकार के आंकड़ों में इन मौतों को शामिल नहीं किया गया है। ज्यादातर लोगों ने घरों में दम तोड़ा है। कई मरीज झोलाछाप चिकित्सकों के हवाले हैं।
पाटिल ने बताया कि कई लोगों में कोविड के लक्षण हैं। लेकिन, लोग जांच से दूर हैं। रैंडम टेस्टिंग बंद होने से ऐसे मामले छूट जा रहे हैं।
बढ़ रही मृतकों की संख्या
घर पर मरीजों का उपचार कराने वाले डॉ. मकसूद ने बताया कि अकेले बीदर जिले में प्रतिदिन करीब 50 लोगों की मौत हो रही है। कई मरीज अस्पताल में भर्ती नहीं होना चाहते हैं। उपचार में देरी मृतकों की संख्या बढऩे का बड़ा कारण है।
कोविड के मृतकों में गिनती नहीं
बेलगावी में रामदुर्ग तालुक के एक स्वास्थ्य कार्यकर्ता के अनुसार अंतिम समय में अस्पताल पहुंचने वाले गंभीर मरीजों की संख्या बढ़ी है। अस्पताल पहुंचने से पहले या भर्ती होने के फौरन बाद मरने वाले मरीजों की गिनती कोविड के मृतकों में नहीं होती है। कारण, इनमें से ज्यादातर लोगों ने जांच नहीं कराई होती है। मौत के बाद अधिकारियों की जानकारी के बिना ही कई मृतकों का दाह-संस्कार हो रहा है।
संदिग्ध इलाकों में पूल टेस्टिंग (एक से ज्यादा सैंपल को एक साथ लेकर जांच करना और संक्रमण का पता लगाना) के जरिए कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों का पता लागया जाता है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के दिशा-निर्देशों के मुताबिक अधिकतम पांच लोगों की एक साथ पूल टेस्टिंग की जा सकती है। लेकिन, करीब एक माह से इसे बंद कर दिया गया है।
पांच फीसदी से कम पॉजिटिविटी दर वाले क्षेत्रों में ही पूल टेस्टिंग
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के अनुसार पॉजिटिविटी दी पांच फीसदी से कम हो तभी पूल टेस्टिंग से मदद मिल सकती है। फिलहाल, कई जिलों में पॉजिटिविटर दर 20 फीसदी से ज्यादा है। मरीजों व नमूनों की बढ़ती संख्या के कारण रैंडम जांच संभव नहीं है। ज्यादा से ज्यादा लोगों की आरट-पीसीआर जांच हो रही है। इसमें समय लगता है। कोविड जांच लैबों पर बोझ ज्यादा है। मानव संसाधनों की कमी है। कोविड पॉजिटिव होने पर कई कर्मचार करीब तीन सप्ताह तक काम पर नहीं आ पाते हैं।
जांच किट की कमी नहीं
राज्य कोविड टास्क फोर्स (Karnataka Covid Task Force) के प्रमुख व उपमुख्यमंत्री डॉ. सी. एन. अश्वथनारायण (Dr. C.N. Ashwath Narayan) ने बताया कि पूल टेस्टिंग 90 फीसदी तक घटी है। पांच फीसदी से कम पॉजिटिविटी दर क्षेत्रों में ही पूल टेस्टिंग जारी है। वो भी प्राइमरी कॉन्टैक्ट्स (Primary Contacts) का पता लगाने के लिए। पांच के बदले कई लैब एक साथ दो नमूने की जांच रहे हैं। उन्होंने कहा कि रैंडम टेस्टिंग की जगह सरकार लक्षित जांच का सहारा ले रही है। राज्य में आर-टीपीआर व रैपिड एंटीजन जांच किट की कोई कमी नहीं है। राज्य सरकार के पास 60 लाख आरटी-पीआर व रैपिड एंटीजन जांच किट (RT-PCR and RAPID ANTIGEN TEST KIT) उपलब्ध है। हाल ही में 50 हजार रैपिड एंटीजन जांच किट की आपूर्ति हुई है। राज्य सरकार अतिरिक्त 50 लाख आरटी-पीआर जांच किट खरीदेगी।
30 फीसदी संदिग्ध नमूनों की हो रैपिड एंटीजन जांच
जेनेटिक सीक्वेंसिंग (आनुवांशिक अनुक्रमण – genetic sequencing) के नोडल अधिकारी डॉ. वी. रवि ने बताया कि पहले के मुकाबले टेस्टिंग बढ़ाने की जरूरत है। मामले बढऩे लगे तो 30 फीसदी संदिग्ध मरीजों की रैपिड एंटीजन जांच की जा सकती है।