सालुमरदा तिमक्का ऊर्फ वृक्ष माता पद्मश्री पुरस्कार लेने पहुंची थीं। जब वह अपने से 33 साल छोटे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से पुरस्कार प्राप्त कर रही थीं तभी राष्ट्रपति ने उनसे चेहरा कैमरे की तरफ करने का आग्रह किया। उसी पल तिमक्का ने राष्ट्रपति का माथ छू लिया और आशीर्वाद दिया। तिमक्का की ममता भरे स्पर्श से राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य मेहमानों के चेहरे पर मुस्कान आ गई। समारोह कक्ष में उत्साह भर गया और तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंज उठा।
राष्ट्रपति भवन में यह अद्भुत नजारा था। बाद में राष्ट्रपति ने ट्वीट कर कहा कि ‘पद्म पुरस्कार समारोह में देश के सर्वश्रेष्ठ और योग्य हस्तियों को सम्मानित करना राष्ट्रपति का विशेषाधिकार होता है। लेकिन, आज जब मैं उस समय अभिभूत हो गया जब सबसे वृद्ध पद्म पुरस्कार विजेता कर्नाटक की 107 वर्षीय पर्यावरणविद् तिमक्का ने मुझे आशीर्वाद देना उचित समझा।’
तिमक्का पर्यावरण संरक्षण के लिए अपने अथक प्रयासों के लिए जानी जाती हैं। तिमक्का की कहानी धैर्य और दृढ़ संकल्प की अद्भूत मिसाल है। उनका जीवन काफी सादा और सामान्य था। शादी के कई वर्षों बाद भी जब उन्हें कोई संतान नहीं हुई तो पेड़ लगाने लगीं और उन्हें ही अपनी संतान मान लिया। रामनगर जिले के मागड़ी तालुक के हुलिकल और कडूर के बीच 4 किलोमीटर लंबे मार्ग पर 385 बरगद के पेड़ उन्हीं के प्रयासों से लगे हैं। तिम्मक्का की पहचान वैश्विक स्तर पर भी रही है।
वर्ष 2016 में उन्हें विश्व की प्रेरणादायी महिलाओं की सूची में प्रमुख स्थान दिया गया।
एक अमरीकी पर्यावण संगठन ने लॉस एंजिल्स और ऑकलैंड में अपने पर्यावरण केंद्र का नाम तिमक्का के नाम पर रखा। हालांकि, उनके पति का निधन 1991 में हो गया लेकिन पेड़ लगाने का अभियान वो अकेले दम पर चलाती रहीं। दरअसल, एक समय तो वे खुदकुशी की सोच रही थी लेकिन उनके पति ने उनका साथ दिया और उन्होंने पौधारोपण के लिए जीवन समर्पित कर दिया। वह रोजाना पति के साथ निकलतीं और जब संभव होता वहां पौधे लगा देतीं। पुरस्कार प्राप्त करने राष्ट्रपति भवन गई तिमक्का ने वहां भी पौधे लगाए।