वास्तविक मौन वह जो आत्मतत्व में प्रतिष्ठित कर दे: देवेंद्रसागर
राजाजीनगर में प्रवचन

बेंगलूरु. राजाजीनगर के सलोत जैन आराधना भवन में आचार्य देवेंद्रसागर सूरी ने मौन एकादशी पर्व निमित्त हुए प्रवचन में कहा कि लोग मौन की महिमा गाते हैं।
लेकिन यह समझना जरूरी है कि कब बोलना चाहिए। जब किसी ने अच्छा कार्य किया है तब सराहना करने के लिए, जब किसी का काम बिगड़ रहा है तब सुधारने के लिए, जब किसी दु:खी को आश्वासन की जरूरत हो तब मरहम जैसे शब्दों का उपयोग करने के लिए, जब किसी ने हम पर उपकार किया तब आभार जताने के लिए, जब हमारे चुप रहने से अव्यवस्था फैल रही है तब व्यवस्था सुचारू करने के लिए और हमारे दो शब्दों से कोई जीवन में आगे बढ़ सकता है तब प्रेरणा देने के लिए शब्द का उपयोग अवश्य करें।
आचार्य ने कहा कि जीभ पर लगे घाव जल्दी भरते हैं मगर जीभ से लगे घाव भरने में जिंदगी पूरी हो जाती है। न बोलने पर तो पशु और मानव दोनों समान दिखते है, मगर बोलने से ही पता चलता है कि, कौन इन्सान है और कौन पशु। जिव्हा पर नियंत्रण मौन का एक पक्ष हो सकता है लेकिन वास्तविक मौन तो वह है जो हमारे भीतर चलने वाली विचारों की भागमभाग पर विराम लगाकर हमें आत्मतत्व में प्रतिष्ठित कर दें। वाचालता पर विराम और विचारों से विश्रांति ही मौन की सच्ची साधना है।
ऐसे ही मौन से ज्ञान की गंगोत्री प्रकट होती है। मौन एकादशी इसी आराधना में नित निरंतर आगे बढऩे का संदेश देती है। आचार्य की निश्रा में मौन एकादशी पर्व की आराधना हुई। सलोत आराधना भवन में बड़ी संख्या में पहुंचे श्रावकों ने आचार्य के दर्शन-वंदन का लाभ लिया।
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