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कर्म को भीतर आने से रोकता है धर्म

locationबैंगलोरPublished: Aug 24, 2019 08:09:50 pm

Submitted by:

Rajendra Vyas

आचार्य महाश्रमण के प्रवचन
अखिल भारतीय संस्कृत भारती के संगठन मंत्री दिनेश कामट ने भावनाओं को संस्कृत में अभिव्यक्त किया

कर्म को भीतर आने से रोकता है धर्म

कर्म को भीतर आने से रोकता है धर्म

बेंगलूरु. आचार्य महाश्रमण ने कहा कि आदमी के जीवन में धर्म का परम महत्व है, इसके बावजूद भी आदमी से प्रतिदिन कोई न कोई अधर्म की प्रवृत्ति हो ही जाती है। मानों धर्म और अधर्म का खाता साथ-साथ चलता रहता है। ‘सम्बोधि’ में बताया गया कि धर्म का कार्य है कर्मों को भीतर आने से रोकना और पूर्वार्जित कर्मों का क्षरण करना तथा अधर्म का कार्य है पापों का भीतर में संचरण करना। जितना भी संभव हो सके आदमी को अधर्म अर्थात पाप कर्मों से अपनी आत्मा का बचाने का प्रयास करना चाहिए और धर्मार्जन का प्रयास करना चाहिए। आदमी को संकल्प यह करना चाहिए कि सामने पर्युषण आ रहा है। उस दौरान मैं झूठ न बोलूं।
इसी प्रकार पर्युषण के दौरान किसी भी प्रकार की चोरी से बचने का प्रयास होना चाहिए। इस दौरान मैं किसी पर गुस्सा भी नहीं करूंगा। इस प्रकार आदमी एक लक्ष्य निर्धारण करे और उस अनुरूप आचरण करे तो वह सलक्ष्य रूप में नियमित होने वाले पापों से अपनी आत्मा को बचा सकता है। चलते हुए यह ध्यान दे कि चलने के दौरान किसी जीव की हिंसा न होने पाए, वह हरियाली से बचकर चले तो वह कितने ही अनावश्यक पापों से अपनी आत्मा का बचाव कर सकता है। शुभ योग में रहते हुए जप, स्वाध्याय, ध्यान, साधना के माध्यम से आदमी को धर्म का अर्जन करने का प्रयास करना चाहिए। धर्म के क्षेत्र में भावना का भी बड़ा महत्व होता है। आदमी की जैसी भावना होती है, वैसी उसकी सिद्धि होती है। आदमी के मन में भी पाप के भाव न आएं, ऐसा प्रयास करना चाहिए। आदमी की काय और वाणी की प्रवृत्ति के पीछे उसकी भावना क्या है, यह महत्वपूर्ण है। आदमी का लक्ष्य भी शुद्ध हो, तरीका शुद्ध हो और भावना भी शुद्ध हो तो धर्म का अर्जन हो सकता है। आचार्य ने स्वरचित कृति ‘महात्मा महाप्रज्ञ’ का सरस शैली में वाचन व व्याख्या कर लोगों को प्रेरणा प्रदान की। अखिल भारतीय संस्कृत भारती के संगठन मंत्री दिनेश कामट ने अपनी भावनाओं को संस्कृत भाषा में अभिव्यक्त करते हुए कहा कि आज संस्कृत भाषा का लोप हो रहा है। आचार्य का आशीर्वाद प्राप्त हो तो संस्कृत भाषा का और अधिक विकास हो सकता है। वहीं कवि सुखदेव सिंह ने आचार्य के समक्ष अपनी भावनाओं को कविता के माध्यम से प्रस्तुत करते हुए वन्दना की और आशीर्वाद प्राप्त किया।
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