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आध्यात्मिक दृष्टि से कम भोजन भी तप है

locationबैंगलोरPublished: Nov 15, 2018 05:06:58 pm

Submitted by:

Rajendra Vyas

जिन कुशल सूरी जैन दादावाड़ी में साध्वी प्रियरंजनाश्री के प्रवचन

dharm aradhana

आध्यात्मिक दृष्टि से कम भोजन भी तप है

बेंगलूरु. जिन कुशल सूरी जैन दादावाड़ी में साध्वी प्रियरंजनाश्री ने कहा कि कम भोजन करना बारह प्रकार के तपों में से एक है। भोजन का प्रवाह शरीर के निर्वाह के लिए आवश्यक है। संसार के प्रत्येक प्राणी का शरीर नैसर्गिक रूप से ही इस प्रकार का बना हुआ है कि आहर के अभाव में वह अधिक काल तक नहीं टिक सकता। इसलिए शरीर के प्रति ममत्व का परित्याग कर देने पर भी बड़े बड़े ऋषियों, मुनियों को भी शरीर यात्रा का निर्वाह करने के लिए आहार लेना पड़ता है।
साध्वी ने कहा कि जिन मनुष्य के जीवन में विनय का अभाव है उसके सभी व्रत विनष्ट हो जाते हैं। जैसे पानी के अभाव में कमल नहीं ठहर सकता है। उसी प्रकार विजय के बिना कोई भी व्रत और नियम जीवन में टिक नहीं सकता है। नम्रता समस्त सद्गुणों की शिरोमणी है। विमलनाथ जैन मंदिर में साध्वी प्रियरंजनाश्री ने कहा कि अधिक निद्रा लेेने वाला व्यक्ति व्याधिग्रस्त, भोगी और आलसी हो जाता है। ये तीनों बातें मनुष्य की ज्ञान प्राप्ति एवं साधना में बाधक बनती हैं। इसलिए नींद उतनी ही लेनी चाहिए जितनी मस्तिष्क और शरीर की थकावट मिटाकर उन्हें स्फूर्तिदायक बनाने में अनिवार्य हो। समय पर सोना और समय पर जागना शरीर को भी स्वस्थ बनाता है तथा ज्ञान प्राप्ति में भी सहायक होता है।
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