तुमकूरु. आचार्य देवेंद्रसागरसूरी एवं मुनि महापद्मसागर विहार करते हुए शुक्रवार को तुमकूरु पहुंचे। धर्मसभा में आचार्य देवेंद्रसागर ने कहा कि हमारा एक स्वभाव बन गया है कि जब कुछ मिल जाता है तो उसका सारा श्रेय स्वयं को देते हैं और जब नाकामयाबी मिलती है तो उसका सारा ठीकरा भाग्य पर फोड़ देते हैं। ऐसी मानसिकता ‘डरÓ से पैदा होती है। यह डर हर आदमी के अंदर बैठा हुआ है। यह न केवल आगे बढऩे से रोक रहा है, बल्कि संघर्ष से पलायन करने के लिए भी बाध्य कर रहा है। अगर सफलता चाहिए तो सबसे पहले मुश्किलों से दोस्ती और डर का सामना करना सीख लीजिए। जीवन का एक फार्मूला है कि जो आपको डराए, उसके सामने खड़े हो जाइए। लेकिन अजीब बात यह है कि ज्यादातर लोग अपने डर को भगाने के लिए दरगाह, बाबाओं की शरण में चले जाते हैं। यह कुछ उस मजाकिया मुहावरे का दोहराव है कि ‘शांति होती है घर-परिवार में, ढूंढऩे जाते हैं हरिद्वार मेंÓ। अनुभव बताते हैं कि मुश्किलें न हों तो आगे का रास्ता खोजना भी मुश्किल हो जाए। मुश्किलें गिराती हैं तो उठाती भी हैं। तब यह महत्वपूर्ण नहीं होता कि कोई कितनी बार गिरता है, बल्कि महत्व इस बात का होता है कि वह कितनी बार ऊपर उठ सकता है। अंत में आचार्य ने एक सुझाव दिया कि अगर आपके पास बहुत से डर हैं तो आपको सिर्फ एक डर का इलाज करना है, वह है असफलता का डर। आचार्य का 12 जुलाई को बेंगलूरु में नगर प्रवेश है जिसकी तैयारी कई दिनो से जारी है।