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आनंद ही मनुष्य की आत्मा का स्वभाव है

locationबैंगलोरPublished: Nov 15, 2018 06:43:50 pm

Submitted by:

Rajendra Vyas

जैन संत रमणीक मुनि के प्रवचन

dharmik pravacha

आनंद ही मनुष्य की आत्मा का स्वभाव है

बेंगलूरु. स्थानीय गोडवाड़ भवन में वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ चिकपेट शाखा के तत्वावधान में बुधवार को रविंद्र मुनि ने मंगलाचरण से प्रवचन की शुरुआत की। रमणीक मुनि ने ओमकार का उच्चारण कराया व चारों संप्रदाय के आचार्य की जय करवाई।
उन्होंने कहा कि अध्यात्म जगत को समझने व अंदर की दुनिया को देखने के लिए ‘मेरी भावनाÓ रूपी महाकाव्य एक अद्भुत काव्य है। जब भी हम इस में उतरते हैं तो आत्मा के तल का स्पर्श संभव है। व्यक्ति के सुख और दुख के तीन कारण होते हैं दुख और सुख दोनों यहीं से पैदा होते हैं। आनंद को आत्मा का स्वभाव बताते हुए मुनि ने दु:ख और सुख के विभिन्न प्रकारों का विस्तार से उल्लेख किया। किसी का रोग भले ही कोई व्यक्ति मिटा नहीं सकता हो, लेकिन मंगल भाव से सभी के स्वस्थ रहने की मंगल भावना तो व्यक्त की जा सकती है।
मुनि ने कहा कि व्यक्ति को मोक्ष में जाने से पूर्व इन पांच तत्वों में रहना ही है। अनासक्त रहते हुए आत्म तत्व को प्राप्त किया जा सकता है। दीपक आत्मा का प्रतीक है। दिए की ज्योति दिए से प्रकट हुई है फिर भी उससे अलग है। आत्म तत्व की व्याख्या लिए ज्योति के ऊपर की तरफ लपट उध्र्वगमन ही आत्म तत्व है, क्योंकि आत्मा का मुख्य स्वभाव ऊपर की ओर जाना है। इसी तत्व को आत्म तत्व कहा जाता है। रमणीक मुनि ने कहा आत्मा यदि प्रकृति से बनी होती तो आत्मा में कभी संसार से मुक्त होने की तड़प पैदा नहीं होती। संसार से मुक्त होने की तड़प आत्मा में है तो इसका मतलब संसार और आत्मा अलग है। आत्मा का असली घर मुक्तालय अर्थात सिद्धालय है और जब तक वह मुक्त नहीं होती तब तक 84 भवों में भटकती ही रहती है। ऋषिमुनि ने गीतिका पेश की। संचालन चिकपेट शाखा के सह मंत्री सुरेशचंद्र मूथा ने किया।
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