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हृदय में आदर भाव,जामन की भांति

locationबैंगलोरPublished: Aug 04, 2021 08:48:17 am

Submitted by:

Yogesh Sharma

धर्मसभा

हृदय में आदर भाव,जामन की भांति

हृदय में आदर भाव,जामन की भांति

बेंगलूरु. महावीर स्वामी जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ त्यागराज नगर में विराजित आचार्य महेंद्रसागर सूरी ने कहा कि हृदय में आदर भाव तो उस जामन की भांति होता है जो दूध को दही में परिवर्तित कर देता है। जबकि हृदय में रहा अनादर भाव तो तेजाब के समान है, जो दूध को फाड़ देता है। थोड़ी सी छाछ के संपर्क से दूध दही में बदल जाता है। बस हदय में देव गुरु धर्म के प्रति बहुमान भाव हो तो आत्मा विकास के मार्ग पर एकदम स्थिर हो जाती है। जिस तरह दही जमने पर दूध की अपेक्षा दही ठोस हो जाता है। बस हृदय मेरा आदर भाव जीवात्मा को धर्म भाव में एकदम स्थिर कर देता है, जिसके हृदय में आने अपने गुरुदेव के प्रति पूर्ण आदर भाव होगा, वही व्यक्ति गुरुवर की अमृतवाणी का श्रवण करने के लिए लाना ही पड़ेगा, परंतु जिसके दिल में अपने गुरुवर के प्रति आदर भाव नहीं है तो उसे जिनवाणी श्रवण में रस कहां से आएगा। गुरु तो उम्र में छोटे भी हो सकते हैं गुरु और शिष्य का संबंध तो देह से ऊपर उठा हुआ है। वह संबंध तो आत्मा के कारण है। इसलिए देख के नष्ट होने पर भी गुरु का संबंध टूट नहीं जाता है। माता-पिता आदि एक भव के उपकारी हैं जबकि गुरुवर तो भव भव के उपकारी हैं। वह तो अपनी-अपनी आत्मा के भव का अंत लाने वाले हैं। ऐसे उपकारी गुरुवर के प्रति तो हृदय से खूब आदर और अभिमान भाव होना चाहिए।
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