प्रदेश में स्वाइन फ्लू के आधे मामले शहर से
इस वर्ष की पहली छमाही में सामने आए 17 मामले
8 मामले बीबीएमपी क्षेत्र के
बेंगलूरु. प्रदेश में इस साल जनवरी से लेकर सोमवार (18 जून) तक एच1एन1 यानी स्वाइन फ्लू के कुल 17 मामले सामने आए हैं। इनमें से आठ बृहद बेंगलूरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) क्षेत्र से हैं। चार मरीज दक्षिण कन्नड़ व शेष कोलार, बागलकोटे, यादगीर, हासन और मैसूरु से हैं। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण सेवा निदेशालय ने बुधवार को यह आंकड़ा जारी किया। जिसके अनुसार प्रदेश में अब तक स्वाइन फ्लू से कोई मौत नहीं हुई है। कुल 2529 संदिग्ध मरीजों की जांच हुई।
राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ चेस्ट डिसीज के पूर्व निदेशक डॉ. शशिधर बुग्गी के अनुसार आम तौर पर अप्रेल-मई में स्वाइन फ्लू का प्रसार ज्यादा होता है। जारी आंकड़ों से लगता है कि इस बार स्थिति नियंत्रण में है। गत वर्ष पहले तीन महीने में ही मरीजों की संख्या 300 के पार पहुंच गई थी। स्वाइन फ्लू शुरुआती कुछ वर्षों की तरह उतना खतरनाक नहीं रहा। फिर भी स्तर पर सावधानी बरतने की जरूरत है।
गौरतलब है कि गत वर्ष प्रदेश में सामने आए स्वाइन फ्लू के 3260 मरीजों में से 15 की मौत हुई थी, जबकि वर्ष 2015 में 3565 मरीजों में से 94 मरीजों को बचाया नहीं जा सका था।
इस वर्ष की पहली छमाही में सामने आए 17 मामले
8 मामले बीबीएमपी क्षेत्र के
बेंगलूरु. प्रदेश में इस साल जनवरी से लेकर सोमवार (18 जून) तक एच1एन1 यानी स्वाइन फ्लू के कुल 17 मामले सामने आए हैं। इनमें से आठ बृहद बेंगलूरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) क्षेत्र से हैं। चार मरीज दक्षिण कन्नड़ व शेष कोलार, बागलकोटे, यादगीर, हासन और मैसूरु से हैं। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण सेवा निदेशालय ने बुधवार को यह आंकड़ा जारी किया। जिसके अनुसार प्रदेश में अब तक स्वाइन फ्लू से कोई मौत नहीं हुई है। कुल 2529 संदिग्ध मरीजों की जांच हुई।
राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ चेस्ट डिसीज के पूर्व निदेशक डॉ. शशिधर बुग्गी के अनुसार आम तौर पर अप्रेल-मई में स्वाइन फ्लू का प्रसार ज्यादा होता है। जारी आंकड़ों से लगता है कि इस बार स्थिति नियंत्रण में है। गत वर्ष पहले तीन महीने में ही मरीजों की संख्या 300 के पार पहुंच गई थी। स्वाइन फ्लू शुरुआती कुछ वर्षों की तरह उतना खतरनाक नहीं रहा। फिर भी स्तर पर सावधानी बरतने की जरूरत है।
गौरतलब है कि गत वर्ष प्रदेश में सामने आए स्वाइन फ्लू के 3260 मरीजों में से 15 की मौत हुई थी, जबकि वर्ष 2015 में 3565 मरीजों में से 94 मरीजों को बचाया नहीं जा सका था।