scriptमुनि ने की धर्म के भेद की व्याख्या | Sage explained the mystery of religion | Patrika News

मुनि ने की धर्म के भेद की व्याख्या

locationबैंगलोरPublished: Sep 29, 2020 02:32:04 pm

शूले स्थानक में प्रवचन

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बेंगलूरु. अशोकनगर शूले जैन स्थानक में श्रमण संघीय डॉ. समकित मुनि ने उत्तराध्ययन सूत्र में वर्णित केशी गौतम संवाद रूपी अध्ययन पर प्रवचन देते हुए कहा कि केशी श्रमण गौतम स्वामी से पूछते हैं कि तीर्थंकर पाश्र्वनाथ और तीर्थंकर महावीर के धर्म में भेद क्यों है? पाश्र्वनाथ प्रभु के साधक चार महाव्रत पालते हैं, रंगीन वस्त्र उपयोग करते हैं, पाप लगने पर उसका प्रतिक्रमण करते हैं। जबकि महावीर प्रभु के साधक पंच महाव्रत का पालन करते हैं, श्वेत वस्त्र उपयोग करते हैं और निश्चित काल से प्रतिक्रमण करते हैं।
गौतम स्वामी ने कहा कि यह भेद प्रज्ञा की समीक्षा के कारण बाहरी भेद है। तीर्थंकर देशकाल अनुसार धर्म को परिभाषित करते हैं। निश्चय और व्यवहार रूपी दो प्रकार का धर्म है। निश्चय धर्म शाश्वत रहता है परंतु व्यवहार धर्म में तीर्थंकर भी बदलाव करते हैं। समयानुसार परिवर्तन करना यह शास्त्रीय नियम है।
मुनि ने कहा कि अंतिम तीर्थंकर के साधक जड़ हैं, प्रथम तीर्थंकर के साधक सरल और जड़ थे और अन्य बाईस(सभी) तीर्थंकरों के साधक ऋजु-प्राज्ञ (सरल- समझदार) थे। जिनके पास सरलता और समझदारी होती है उनके लिए अधिक अनुशासन की आवश्यकता नहीं होती। पशु को समझाना आसान है परंतु ऐसे व्यक्तियों को समझाना अत्यंत कठिन है जो समझदार न होकर भी समझदार होने का दावा करते हैं।
श्रीकृष्ण-सुदामा का चारित्र प्रारंभ करते हुए मुनि ने कहा कि कृष्ण सुदामा का याराना ऐसा था जो सदियां बीत गई लेकिन आज भी याद किया जाता है। जिस यारी में छल-कपट नहीं होता, उसे दुनिया याद करती है।
प्रेम कुमार कोठारी ने बताया कि संचालन मनोहर लाल बंब ने किया। इस मौके पर विलुपुरम से महावीर चंद ओस्तवाल उपस्थित थे।

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