गौतम स्वामी ने कहा कि यह भेद प्रज्ञा की समीक्षा के कारण बाहरी भेद है। तीर्थंकर देशकाल अनुसार धर्म को परिभाषित करते हैं। निश्चय और व्यवहार रूपी दो प्रकार का धर्म है। निश्चय धर्म शाश्वत रहता है परंतु व्यवहार धर्म में तीर्थंकर भी बदलाव करते हैं। समयानुसार परिवर्तन करना यह शास्त्रीय नियम है।
मुनि ने कहा कि अंतिम तीर्थंकर के साधक जड़ हैं, प्रथम तीर्थंकर के साधक सरल और जड़ थे और अन्य बाईस(सभी) तीर्थंकरों के साधक ऋजु-प्राज्ञ (सरल- समझदार) थे। जिनके पास सरलता और समझदारी होती है उनके लिए अधिक अनुशासन की आवश्यकता नहीं होती। पशु को समझाना आसान है परंतु ऐसे व्यक्तियों को समझाना अत्यंत कठिन है जो समझदार न होकर भी समझदार होने का दावा करते हैं।
श्रीकृष्ण-सुदामा का चारित्र प्रारंभ करते हुए मुनि ने कहा कि कृष्ण सुदामा का याराना ऐसा था जो सदियां बीत गई लेकिन आज भी याद किया जाता है। जिस यारी में छल-कपट नहीं होता, उसे दुनिया याद करती है।
प्रेम कुमार कोठारी ने बताया कि संचालन मनोहर लाल बंब ने किया। इस मौके पर विलुपुरम से महावीर चंद ओस्तवाल उपस्थित थे।