वर्षाकाल में विहार आदि निषिद्ध हैं
बेंगलूरु. चन्द्रप्रभु जैन आराधना भवन कैन्टोमेन्ट में धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए विनय मुनि खींचन कहा कि गर्मी में अधिक मात्रा में गर्मी होने से तथा सर्दी ऋतु में अधिक सर्दी होने से, इन दोनों काल में जीवों की उत्पत्ति कम होती है। तिर्यंच गति के जीवों का उत्पादन पानी से जुड़ा होने से, वर्षाकाल में त्रस और स्थावर जीवों की विशेष उत्पत्ति होती है। भारतीय संस्कृति में वर्षाकाल के प्रारंभ के दो मासों में सांसारिक मंगल कार्य भी निषेध माने गए हैं। गांव-गांव में पंडित वर्ग कथाएं करते हैं, दो मास तक। इसी तरह जैन धर्म में भी, जो कि भारतीय संस्कृति व धर्मों का ही एक अंग है। आत्मा परमात्मा तथा कर्म शुभाशुभ को मानने वाला है। श्रावण से ही चातुर्मास याने चौमासा बैठता है। वर्षा से मार्ग अवरुद्ध हो जाते है, पानी मय भींज का वातावरण में खांसी जुकाम बुखार भी ज्यादा होते हैं। खाने पीने की वस्तुओं धान्य आदि को भी पानी से बचाना पड़ता है। मकानों पर भी पानी का असर होता है। कई बार अतिवृष्टि होने से जनमानस- पशुपक्षी तथा गृहस्थ जीवन के चलाने के साधनों का भी विनाश देखा गया है, देखा जाता है। ऐसे काल याने वर्षाकाल में त्यागी संयमी वर्ग तथा गृहस्थी वर्ग दोनों के लिए तीर्थकर भगवान का ध्रुव सन्देश है कि वर्षाकाल में गमनागमन विहारादि यात्रा, त्यागी वर्ग के लिए संम्पूर्ण रूप से निषिद्ध बताई है।
बेंगलूरु. चन्द्रप्रभु जैन आराधना भवन कैन्टोमेन्ट में धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए विनय मुनि खींचन कहा कि गर्मी में अधिक मात्रा में गर्मी होने से तथा सर्दी ऋतु में अधिक सर्दी होने से, इन दोनों काल में जीवों की उत्पत्ति कम होती है। तिर्यंच गति के जीवों का उत्पादन पानी से जुड़ा होने से, वर्षाकाल में त्रस और स्थावर जीवों की विशेष उत्पत्ति होती है। भारतीय संस्कृति में वर्षाकाल के प्रारंभ के दो मासों में सांसारिक मंगल कार्य भी निषेध माने गए हैं। गांव-गांव में पंडित वर्ग कथाएं करते हैं, दो मास तक। इसी तरह जैन धर्म में भी, जो कि भारतीय संस्कृति व धर्मों का ही एक अंग है। आत्मा परमात्मा तथा कर्म शुभाशुभ को मानने वाला है। श्रावण से ही चातुर्मास याने चौमासा बैठता है। वर्षा से मार्ग अवरुद्ध हो जाते है, पानी मय भींज का वातावरण में खांसी जुकाम बुखार भी ज्यादा होते हैं। खाने पीने की वस्तुओं धान्य आदि को भी पानी से बचाना पड़ता है। मकानों पर भी पानी का असर होता है। कई बार अतिवृष्टि होने से जनमानस- पशुपक्षी तथा गृहस्थ जीवन के चलाने के साधनों का भी विनाश देखा गया है, देखा जाता है। ऐसे काल याने वर्षाकाल में त्यागी संयमी वर्ग तथा गृहस्थी वर्ग दोनों के लिए तीर्थकर भगवान का ध्रुव सन्देश है कि वर्षाकाल में गमनागमन विहारादि यात्रा, त्यागी वर्ग के लिए संम्पूर्ण रूप से निषिद्ध बताई है।