पिछले साल फरवरी में ही विधानमंडल ने कम्बाला विधेयक को पारित कर दिया था। इसके बाद केंद्र सरकार से अनुमोदित होने के बाद राज्यपाल ने विधेयक को मंजूरी दे दी थी। इस संशोधन के कारण ही इस बार राज्य के तटवर्ती इलाकों में कम्बाला का आयोजन हुआ था। पिछले साल विधेयक पेश करते हुए पशुपालन मंत्री ए मंजु ने कहा था कि कम्बाला राज्य का पारंपरिक और सांस्कृतिक खेल है जिसमें पशुओं के साथ क्रूरता नहीं होती है। संशोधन के जरिए कम्बाला के साथ बैल दौड़, बैलगाड़ी दौड़ को भी पशु अत्याचार कानून के दायरे से बाहर किया गया था। पेटा सहित कुछ संगठनों ने कानून में संशोधन के शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी जिस पर अभी सुनवाई चल रही है।