script‘गैरकानूनी’ था तीन दिनों तक धारा 144 लागू करने का फैसला | Section 144 Orders Imposed in Bengaluru Were Illegal: Karnataka HC | Patrika News

‘गैरकानूनी’ था तीन दिनों तक धारा 144 लागू करने का फैसला

locationबैंगलोरPublished: Feb 14, 2020 12:21:45 am

Submitted by:

Rajeev Mishra

कर्नाटक हाइकोर्ट ने माना न्यायिक जांच में टिक नहीं सकते ये आदेशप्रशासन ने 18 दिसम्बर से तीन दिनों तक लगाई थी निषेधाज्ञा

kh_2.jpg
बेंगलूरु.
संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों को देखते हुए प्रशासन द्वारा 18 दिसम्बर को घोषित तीन दिनों की निषेद्याज्ञा का आदेश गैरकानूनी था। कर्नाटक उच्च न्यायालय गुरुवार को माना कि अपराध दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 के तहत पारित निषेधाज्ञा का आदेश ‘अवैध’ था और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित न्यायिक जांच परीक्षण के मानदंडों पर खरा नहीं उतरता।
राज्य में 19 दिसम्बर से 21 दिसम्बर तक धारा 144 लागू करने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अभय श्रीनिवास ओक और जस्टिस प्रदीप सिंह येरूर की पीठ ने कहा कि ‘हम विरोध के विषय से चिंतित नहीं हैं। हमारी चिंता का कारण निर्णय करने की प्रक्रिया को लेकर है जो निस्संदेह मौलिक अधिकारों पर अंकुश लगाती है। यह वास्तव में एक एहतियाती कदम है और इन एहतियाती कदमों से नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर अंकुश लगता है। प्रथम दृष्ट्या आदेश में विचारों का गठन परिलक्षित नहीं होता है। इसलिए इन याचिकाओं को प्रारंभिक चरण में सुनवाई के लिए स्वीकार किया जाना चाहिए।’
हालांकि, अदालत ने आदेश रद्द करने से मना कर दिया क्योंकि यह मामला पहले ही हल चुका है। हाइकोर्ट में कांग्रेस के राज्यसभा सांसद राजीव गौड़ा, कांग्रेस विधायक सौम्या रेड्डी और शहर के कुछ अन्य निवासियों ने इस संदर्भ में याचिका दायर की थी। अदालत ने मामले में नतीजे तक पहुंचने के लिए अनुराधा भसीन मामले और रामलीला मैदान की घटना में सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों को भी संदर्भित किया।
दरअसल, यह मामला 18 दिसम्बर को बेंगलूरु पुलिस आयुक्त द्वारा 19 दिसम्बर से आयोजित होने वाली रैलियों से पहले धारा 144 लगाकर उसे प्रतिबंधित करने के आदेश की वैधता से संबंधित था। आदेश की चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पीठ ने राज्य सरकार और पुलिस आयुक्त का पक्ष रखने पेश हुए महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवडगी से कई सवाल पूछे। पीठ ने नवडगी से पूछा कि जब कुछ संगठनों को विरोध प्रदर्शन की अनुमति दे दी गई थी तो उसे रातोंरात कैसे रद्द किया जा सकता है? क्या धारा 144 पूर्व में दी गई अनुमतियों को रद्द कर सकता है? क्या राज्य सरकार इस धारणा पर चल सकती है कि हर विरोध प्रदर्शन हिंसक होगा। इससे पहले की सुनवाई में भी जस्टिस ओक ने नवडगी से कई सवाल किए थे। उन्होंने पूछा था कि ‘क्या राज्य हर एक विरोध पर रोक लगाने जा रही है? आप एक मौखिक आदेश से, प्रक्रिया के बाद प्राप्त अनुमति कैसे रद्द कर सकते हैं? पीठ ने यह कहते हुए राज्य पर सवाल उठाया था कि जहां तक कानून का सवाल है तो शांतिपूर्ण विरोध को रोक नहीं सकते।
हालांकि, राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले अटॉर्नी जनरल ने कहा कि पुलिस आयुक्त ने 11 पुलिस उपायुक्तों से रिपोर्ट प्राप्त की थी जिसमें 19 दिसंबर, 2019 को प्रस्तावित विरोध प्रदर्शन के दौरान ‘असामाजिक तत्वों’ द्वारा हंगामा करने की रिपोर्ट थी। यही वजह थी कि धारा 144 लागू करने की घोषणा की गई। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि 11 डीसीपी की रिपोर्ट आयुक्त के आदेश पारित करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं था क्योंकि इससे सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन होता है। अनुराधा भसीन मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जिला मजिस्ट्रेट को जमीनी स्तर पर जांच करनी चाहिए और धारा 144 लागू करते हुए आदेश में भौतिक साक्ष्य और कारणों के साथ उस सामग्री विशेष को भी शामिल करना चाहिए। उन्होंने कहा कि वर्तमान मामले में पुलिस आयक्त ने जांच नहीं की थी और न ही भौतिक साक्ष्यों का उल्लेख किया था और न ही आयुक्त द्वारा धारा 144 लागू करने के कारण बताए गए थे। इस मामले में जिला मजिस्ट्रेट ने अपने दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया और सिर्फ डीसीपी द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पर्याप्त नहीं है।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो