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आसान नहीं डीएनए प्रोफाइलिंग की राह

locationबैंगलोरPublished: Oct 16, 2021 06:31:47 pm

Submitted by:

Jeevendra Jha

केंद्र में विधेयक लंबित, कर्नाटक ने कानून में संशोधन कर निकाली गली
सजायाफ्ता कैदियों के डीएनए नमूने लेने का मामला

 
 

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बेंगलूरु. अपराध पर नियंत्रण और अपराध न्याय प्रक्रिया को अधिक प्रभावी बनाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने 13 साल पहले डीएनए प्रोफाइलिंग के इस्तेमाल का निर्णय किया था मगर इसे संसद की मंजूरी नहीं मिल पाई है। इधर, कर्नाटक ने कैदियों की पहचान से जुड़े केंद्रीय कानून में संशोधन कर एक महीने से अधिक सश्रम कारावास की सजा पाने वाले कैदियों के रक्त, डीएनए, आवाज के नमूने और आंखों की पुतलियों (आइरिस स्कैन) के निशान संग्रहित करने का प्रावधान कर दिया। पहले इस कानून के तहत एक साल से अधिक के सश्रम जेल के सजायाफ्ता कैदियों के ही नमूने लिए जाने का प्रावधान था।
केंद्र सरकार ने 2018 में लोकसभा में डीएनए तकनीक विधेयक पेश किया था। लेकिन, पारित नहीं हो पाने के कारण जुलाई 2019 में इसे लोकसभा में फिर पेश किया गया। हालांकि, विधेयक स्थायी संसदीय समिति को सौंप दिया गया। फरवरी में दी गई रिपोर्ट में समिति ने डेटा की सुरक्षा, डीएनए नियमन बोर्ड, निजता और गोपनीयता से जुड़े कई सवाल उठाए थे और कई सुझाव भी सरकार को दिए थे। नया विधेयक अभी पेश किया जाना है। सरकार और विशेषज्ञ जहां ऐसे तकनीकी अनुप्रयोग का समर्थन कर रहे हैं। वहीं, विरोधी निजता और गोपनीयता को लेकर सवाल उठा रहे हैं। कर्नाटक विधानसभा में गृह मंत्री अरगा ज्ञानेंद्र ने शंकाओं को खारिज करते हुए इसे आपराधिक न्याय प्रक्रिया में बड़े बदलाव की पहल बताया था।

आपराधिक अन्वेषण के मामले में महत्वपूर्ण टूल
राज्य के पूर्व पुलिस महानिदेशक एसटी रमेश कहते हैं कि तकनीक के साथ कानून में बदलाव भी जरूरी है। पुराना कानून जब बना था तब आइरिस स्कैन नहीं था। यह तकनीक 25-30 साल पहले आई है। आपराधिक अन्वेषण के मामले में आइरिस स्कैन, डीएनए प्रोफाइलिंग काफी महत्वपूर्ण टूल है। कानून में किसी आरोपी के बरी होने पर इन अभिलेखों को नष्ट करने का भी प्रावधान है। हालांकि, फोरेंसिक विशेषज्ञ डी. राव कहते हैं कि इसे लेकर लोगों के संशय को दूर किया जाना जरूरी है क्योंकि डीएनए प्रोफाइल में काफी गहन व्यक्तिगत जानकारी होती है।

कई मामलों में मददगार
देश में अभी डीएनए जांच की सीमित व्यवस्था है। साल में देश भर में 3 हजार से कम मामलों में ही डीएनए प्रोफाइलिंग होती है। कई आपराधिक मामलों में सबूतों के अभाव में अदालतों ने डीएनए रिपोर्ट के आधार पर निर्णय दिए हैं। कर्नाटक उच्च न्यायालय के अधिवक्ता शिवराजू कहते हैं कि इस व्यवस्था से बार-बार अपराध करने वालों की पहचान करना आसान हो सकता है और अभियोजन की दर बढ़ सकती है। लेकिन, सरकार को डेटा सुरक्षा सहित अन्य मसलों पर स्थिति साफ करनी चाहिए।

कई देशों में प्रावधान
इस तरह का कानून बनाने वाला युनाइटेड किंगडम दुनिया का पहला देश था। 1994 के बाद से अभी तक अमरीका, आस्ट्रेलिया, जापान, कनाडा, फ्रांस जैसे 70 से अधिक देशों में इस तरह का कानून बन चुका है।
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