राज्य के पूर्व पुलिस महानिदेशक एसटी रमेश कहते हैं कि तकनीक के साथ कानून में बदलाव भी जरूरी है। पुराना कानून जब बना था तब आइरिस स्कैन नहीं था। यह तकनीक 25-30 साल पहले आई है। आपराधिक अन्वेषण के मामले में आइरिस स्कैन, डीएनए प्रोफाइलिंग काफी महत्वपूर्ण टूल है। कानून में किसी आरोपी के बरी होने पर इन अभिलेखों को नष्ट करने का भी प्रावधान है। हालांकि, फोरेंसिक विशेषज्ञ डी. राव कहते हैं कि इसे लेकर लोगों के संशय को दूर किया जाना जरूरी है क्योंकि डीएनए प्रोफाइल में काफी गहन व्यक्तिगत जानकारी होती है।
देश में अभी डीएनए जांच की सीमित व्यवस्था है। साल में देश भर में 3 हजार से कम मामलों में ही डीएनए प्रोफाइलिंग होती है। कई आपराधिक मामलों में सबूतों के अभाव में अदालतों ने डीएनए रिपोर्ट के आधार पर निर्णय दिए हैं। कर्नाटक उच्च न्यायालय के अधिवक्ता शिवराजू कहते हैं कि इस व्यवस्था से बार-बार अपराध करने वालों की पहचान करना आसान हो सकता है और अभियोजन की दर बढ़ सकती है। लेकिन, सरकार को डेटा सुरक्षा सहित अन्य मसलों पर स्थिति साफ करनी चाहिए।
इस तरह का कानून बनाने वाला युनाइटेड किंगडम दुनिया का पहला देश था। 1994 के बाद से अभी तक अमरीका, आस्ट्रेलिया, जापान, कनाडा, फ्रांस जैसे 70 से अधिक देशों में इस तरह का कानून बन चुका है।