नि:स्वार्थ सेवा ही कामयाबी का मूलमंत्र: देवेन्द्र सागर
- राजाजीनगर में प्रवचन

बेंगलूरु.वीवी पुरम से विहार करते हुए आचार्य देवेंद्रसागर सूरीश्वर एवं मुनि महापद्मसागर राजाजीनगर के लूणिया भवन पहुंचे। प्रवचन देते हुए आचार्य ने कहा कि दूसरों के प्रति नि:स्वार्थ सेवा का भाव रखना ही जीवन में कामयाबी का मूलमंत्र है। नि:स्वार्थ भाव से की गई सेवा से किसी का भी हृदय परिवर्तन किया जा सकता है।
हमें अपने आचरण में सदैव सेवा का भाव निहित रखना चाहिए, जिससे अन्य लोग भी प्रेरित होते हुए कामयाबी के मार्ग पर अग्रसर हो सकें। सेवारत व्यक्ति सर्वप्रथम अपने, फिर अपने सहकर्मियों व अपने सेवायोजक के प्रति ईमानदार हो। इन स्तरों पर सेवाभाव में आई कमी मनुष्य को धीरे-धीरे पतन की ओर ले जाती है। सेवा भाव ही मनुष्य की पहचान बनाती है और उसकी मेहनत चमकाती है।
सेवाभाव हमारे लिए आत्मसंतोष का वाहक ही नहीं बनता बल्कि संपर्क में आने वाले लोगों के बीच भी अच्छाई के संदेश को स्वत: उजागर करते हुए समाज को नई दिशा व दशा देने का काम करता है।
उन्होंने कहा कि दयावान लोग हमेशा खूबसूरत होते हैं, यह सर्वविदित है। सामाजिक, आर्थिक सभी रूपों में सेवा भाव की अपनी अलग-अलग महत्ता है। सेवा भाव के जरिए समाज में व्याप्त कुरीतियों को जड़ से समाप्त करने के साथ ही आम लोगों को भी उनके सामाजिक दायित्वों के प्रति जागरूक किया जा सकता है।
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