जीवन को सार्थक बनाने का प्रयास करें
चामराजनगर. राजस्थान जैन संघ के तत्वावधान में स्वाध्याय अंजना बोहरा ने कहा कि साधना तप-जप के साथ करके जीवन को सार्थक बनाने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि पर्युषण पर्व का मूल उद्देश्य आत्मा को शुद्ध करके आवश्यक उपक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना है। स्वाध्यायी रूपा विनायकिया ने गीतिका प्रस्तुत कर कहा कि पर्युषण में आठ कर्मों को तोडक़र अपने जीवन को सफल बनाना चाहिए। स्वाध्यायी लक्ष्मीबाई वेदमुथा व वीवा पूनामिया ने अंतगड़ दशासूत्र का वाचन किया। दोपहर में धार्मिक प्रतियोगिता का आयोजन हुआ।
कत्र्तव्य समझकर करें सहायता
चामराजनगर. गुंडलपेट स्थानक में साध्वी साक्षी ज्योति ने कहा कि उपकारी को कुछ देना कृतज्ञता होती है, लेकिन जिसके साथ किसी भी प्रकार का संबंध नहीं है उसकी सहायता करना साधर्मिकता होती है। उन्होंने कहा कि किसी के ऊपर उपकार जताने के लिए कभी किसी की सहायता नहीं करनी चाहिए। सहायता तो जीवन का कत्र्तव्य समझकर करनी चाहिए। दान देना भी एक प्रकार की साधर्मिक भक्ति है। साधर्मिक भक्ति का धर्म उत्तम है। साधर्मिक भक्ति करने से दो हृदय निकट आते हैं और दोनों में धर्म के प्रति सद्भाव बढ़ता है। मंजू दक का मासखमण गतिमान है। कल्पसूत्र का वाचन किया गया।
खुद को जीतकर जिन बनने का महापर्व
मैसूरु. स्थानकवसी जैन संघ के स्थानक भवन में समकित मुनि ने कहा कि पर्व पर्युुषण अपने आप को जीत करके जिन बनने का महापर्व है। अपने से लड़ो, दूसरों के साथ संघर्ष मत करो। दूसरों को सहयोग दो- यह जिन बनने का रास्ता है। इससे ही सुखी बन सकते हो। उन्होंने कहा कि जब हमारी वासनाएं जागृत होती हैं तब हम अपने ही शत्रु हो जाते हैं। युद्ध करना है तो अपनी आत्मा रूपी कषायों से करें। बाहर की लड़ाइयां खूब कर लीं, आज तक कोई समाधान नहीं मिला। अध्यक्ष कैलाश जैन ने स्वागत किया। संचालन सुशील नंदावत ने किया।
दान देने से ही बढ़ती है लक्ष्मी
मैसूरु. वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ, सिद्धार्थनगर सीआइटीबी परिसर में श्रुत मुनि ने कहा कि जो धन मनुष्य ने पुरुषार्थ से, पुण्य से, पूर्वजन्म के सद्कार्यों से एवं वर्तमान में अनेक कर्मों का बंध करते हुए झूठ से संचित किया जाता है उस धन का मृत्यु के बाद क्या होगा यह हमें चिंतन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि संचित धन का सदुपयोग करने के लिए धर्म में लगाना चाहिए। अर्थात् धन का सदुपयोग दान में या संघ में, गौशाला, धर्मस्थान निर्माण, स्वधर्मी सेवा, जन उपयोगी संस्था, हॉस्पिटल में करना चाहिए। संचित धन की लूटमार एवं विनाश परिवार जनों द्वारा निश्चित है। अत: हमें अपने हाथों से अपने धन का सदुपयोग करते हुए पुण्यों का संचय करना चाहिए। दान देने से लक्ष्मी बढ़ती है। अक्षर मुनि ने तपश्वियों को प्रत्याख्यान दिलाए एवं गीतिका प्रस्तुत की।