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शिरुर मठ प्रमुख नहीं रहे

locationबैंगलोरPublished: Jul 19, 2018 09:13:02 pm

विषाक्त भोजन के कारण मौत की आशंका को लेकर विवादआवश्यक होने पर सरकार कराएगी जांच : सीएम

laxmiwar

शिरुर मठ प्रमुख नहीं रहे

बेंगलूरु. उडुपी के शिरूर मठ प्रमुख लक्ष्मीवर तीर्थ स्वामी (55) का गुरुवार सुबह संक्षिप्त बीमारी के बाद मणिपाल के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। स्वामी मंगलवार रात से ही अस्पताल में भर्ती थे। चिकित्सकों के विषाक्तता की आशंका जताने के बाद स्वामी के निधन को लेकर विवाद की स्थिति बन गई है। शिरूर मठ उडुपी के ऐतिहासिक श्रीकृष्ण मंदिर से जुड़े अष्ट मठों में से एक है।
बताया जाता है कि उडुपी से 20 किलोमीटर दूर शिरुर गांव में स्थित मठ के प्रमुख लक्ष्मीवर तीर्थ स्वामी ने सोमवार को वन महोत्सव में भाग लेने आए कॉलेज विद्यार्थियों के साथ ही भोजन किया था। उसके बाद ही उन्होंने पेट दर्द की शिकायत की। दर्द बढऩे पर पहले उन्हें उडुपी के ही एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया, लेकिन बाद में तबीयत ज्यादा खराब होने पर उन्हें मंगलवार देर रात उडुपी जिले के मणिपाल में स्थित कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया, जहां गुरुवार सुबह करीब 8.30 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।
अस्पताल प्रशासन की ओर से जारी बयान में कहा कि स्वामी को 17-18 जुलाई की दरम्यानी रात 1.05 बजे काफी गंभीर स्थिति में अस्पताल ला गया था। स्वामी को सांस लेेने में दिक्कत, हाइपर टेंशन और जठरांत्रिय (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल) रक्तस्राव की समस्या थी। इससे पहले उन्हें डायरिया भी हुआ था। आपात चिकित्सा कक्ष में भर्ती किए गए स्वामी का उपचार चिकित्सकों की विशेषज्ञ टीम ने किया। जीवनरक्षक प्रणाली (वेंटिलेटर) पर रखने के साथ ही डायलिसिस भी की गई। विषाक्तता के संदेह के कारण नमूने भी जांच के लिए भेजे गए।
हालांकि, चिकित्सकों के तमाम प्रयासों के बावजूद उनकी स्थिति बिगड़ती गई। आंतरिक रक्तस्राव के कारण उनका रक्तचाप काफी गिर गया है और कई अंगों के काम नहीं करने के कारण उनका निधन हो गया। अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉअविनाश शेट्टी ने बताया कि नियमों के मुताबिक स्वामी के निधन के बारे में पुलिस को सूचित किया गया। उन्होंने कहा कि अंत्यपरीक्षण रिपोर्ट से मौत के कारणों का पता चलेगा। अंत्यपरीक्षण के बाद स्वामी के पार्थिव शरीर को पहले कृष्ण मंदिर और फिर शिरूर मठ ले जाया गया, जहां अंतिम संस्कार कर दिया गया।
चिकित्सकों के विषाक्तता का संदेह जताने के कारण स्वामी के अनुयायियों ने उनके प्राकृतिक निधन पर संदेह जताया है, जिसे लेकर विवाद की स्थिति बन गई। स्वामी के वकील रवि किरण ने भी उनकी मौत प्राकृतिक होने पर संदेह जताते हुए कहा कि उन्होंने कुछ दिन पहले जान को खतरा होने की आशंका जताई थी।
मठ के विवाद को लेकर वे अदालत में याचिका दायर करने वाले थे। उनके वकील ने कहा कि बीमार होने के कारण उन्होंने कुछ समय पहले मठ की मूर्ति कृष्ण मंदिर में रख दी थी, जिसे अब वे वापस लाना चाहते थे। करीब 47 साल से आध्यात्मिक जीवन में रहे स्वामी का बाकी मठ प्रमुखों से कई मसलों पर मतभेद था। स्वामी ने पिछले विधानसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर नामांकन पत्र भी दाखिल किया था। हालांकि, बाद में उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया था।
उधर, बेंगलूरु में मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी ने स्वामी के निधन से जुड़े घटनाक्रम को लेकर उपजे संदेह के बारे में पूछे जाने पर कहा कि अगर कोई संदेह होता है और जांच की आवश्यकता लगती है तो सरकार इसके लिए आदेश देगी।
गृह विभाग का दायित्व संभाल रहे उपमुख्यमंत्री डॉ. जी परमेश्वर ने कहा कि कई लोगों ने स्वामी के निधन को लेकर शंका जताई है। अगर आवश्यकता होगी तो जांच कराई जाएगी।
परमेश्वर ने कहा कि स्वामी के निधन पर संदेह करने जैसी बात अभी तक नजर नहीं आई है। यदि संदेहों में किसी तरह की स्पष्टता नजर आती है तो जांच करवाई जाएगी। पुलिस अधिकारी पहले ही इस केस के बारे मे जांच-पड़ताल करने में जुटे हैं।

हुब्बल्ली में पत्रकारों से बातचीत में अष्ट मठ प्रमुखों में सबसे वरिष्ठ पेजावर मठ प्रमुख स्वामी विश्वेश तीर्थ ने स्वामी को भोजन में जहर दिए जाने की आशंकाओं को खारिज करते हुए कहा कि ऐसा संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि बेवजह किसी तरह का शक करना सही नहीं है। उन्होंने स्वामी के निधन को प्राकृतिक बताते हुए कहा कि स्वामी का स्वास्थ्य साल भर से ठीक नहीं था और उन्होंने पूजा-पाठ भी छोड़ रखा था।

पेजावर मठ के पूर्व कनिष्ठ मठ प्रमुख विश्व विजय स्वामी ने स्वामी की मौत के अप्राकृतिक होने की आशंंका जताई और इस प्रकरण की सीबीआई या सीआईडी से जांच की मांग की है।

उधर, पुलिस स्वामी के भाई लताव्य आचार्य की शिकायत पर अप्राकृति मौत का मामला दर्ज कर जांच कर रही है।
गौरतलब है कि 13 वीं सदी के दार्शनिक माधवाचार्य द्वारा स्थापित अष्ट मठों के प्रमुखों को बारी-बारी से मुख्य मंदिर श्रीकृष्ण मठ की जिम्मेदारी दो साल के लिए मिलती है। हर दो साल पर होने वाले पर्याय महोत्सव के बाद मुख्य मठ के प्रशासन व पूजा-अर्चना की जिम्मेदारी बदलती है।
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