निजलिंगप्पा जैसी न हो जाए हालात
दरअसल, सिद्धू हार का जोखिम नहीं लेना चाहते हैं क्योंकि इससे पार्टी के सत्ता में वापस लौटने की स्थिति में भी मुख्यमंत्री पद पर उनका दावा कमजोर हो जाएगा। पिछले चुनाव में तुमकूरु जिले के कोरटगेरे से चुनाव हार जाने के कारण ही प्रदेश अध्यक्ष डॉ जी परमेश्वर दलित मुख्यमंत्री की मांग के बावजूद दौड़ में पिछड़ गए थे। सिद्धू चामुंडेश्वरी से 1983 से लेकर 2008 के बीच में पांच बार विधायक रह चुके हैं लेकिन उसके बाद नए परिसीमन के साथ इस क्षेत्र का भूगोल और राजनीतिक समीकरण भी बदल चुका है। वोक्कालिगा बहुल इस क्षेत्र से विपक्ष की घेराबंदी के कारण सिद्धू अपनी जीत को लेकर सशंकित हैं। सिद्धू को इस बात की चिंता है कि कहीं उनकी स्थिति पूर्व मुख्यमंत्री एस निजलिंगप्पा जैसी नहीं हो जाए।
निजलिंगप्पा एकीकृत कर्नाटक के पहले मुख्यमंत्री थे लेकिन 1962 के विधानसभा चुनाव में अपने गृह क्षेत्र से चुनाव हार गए थे। निजलिंगप्पा मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे लेकिन चित्रदुर्गा जिले की होसदुर्गा सीट पर राजनीति के एक नए खिलाड़ी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के टी जी रंगप्पा ने निजलिंगप्पा को 5 हजार से अधिक मतों से हरा दिया। हालांकि, कांग्रेस २०८ में से 138 सीटों के साथ सत्ता में लौटी और निजलिंगप्पा मुख्यमंत्री भी बने। दो महीने बाद निजलिंगप्पा बागलकोट सीट से निर्विरोध विधायक चुने गए लेकिन सिद्धू की स्थिति निजलिंगप्पा जैसी नहीं है। चुनाव हारने की स्थिति में उनका दावा मजबूत नहीं रहेगा।
दरअसल, सिद्धू हार का जोखिम नहीं लेना चाहते हैं क्योंकि इससे पार्टी के सत्ता में वापस लौटने की स्थिति में भी मुख्यमंत्री पद पर उनका दावा कमजोर हो जाएगा। पिछले चुनाव में तुमकूरु जिले के कोरटगेरे से चुनाव हार जाने के कारण ही प्रदेश अध्यक्ष डॉ जी परमेश्वर दलित मुख्यमंत्री की मांग के बावजूद दौड़ में पिछड़ गए थे। सिद्धू चामुंडेश्वरी से 1983 से लेकर 2008 के बीच में पांच बार विधायक रह चुके हैं लेकिन उसके बाद नए परिसीमन के साथ इस क्षेत्र का भूगोल और राजनीतिक समीकरण भी बदल चुका है। वोक्कालिगा बहुल इस क्षेत्र से विपक्ष की घेराबंदी के कारण सिद्धू अपनी जीत को लेकर सशंकित हैं। सिद्धू को इस बात की चिंता है कि कहीं उनकी स्थिति पूर्व मुख्यमंत्री एस निजलिंगप्पा जैसी नहीं हो जाए।
निजलिंगप्पा एकीकृत कर्नाटक के पहले मुख्यमंत्री थे लेकिन 1962 के विधानसभा चुनाव में अपने गृह क्षेत्र से चुनाव हार गए थे। निजलिंगप्पा मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे लेकिन चित्रदुर्गा जिले की होसदुर्गा सीट पर राजनीति के एक नए खिलाड़ी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के टी जी रंगप्पा ने निजलिंगप्पा को 5 हजार से अधिक मतों से हरा दिया। हालांकि, कांग्रेस २०८ में से 138 सीटों के साथ सत्ता में लौटी और निजलिंगप्पा मुख्यमंत्री भी बने। दो महीने बाद निजलिंगप्पा बागलकोट सीट से निर्विरोध विधायक चुने गए लेकिन सिद्धू की स्थिति निजलिंगप्पा जैसी नहीं है। चुनाव हारने की स्थिति में उनका दावा मजबूत नहीं रहेगा।
देवेगौड़ा ने शुरू की थी परंपरा
हालांकि, राज्य में दो सीटों से चुनाव लडऩे की परिपाटी कम रही है। पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा एक साथ दो सीटों से चुनाव लडऩे वाले पहले नेता थे। देवेगौड़ा ने 1985 के विधानसभा चुनाव में हासन जिले की परंपरागत होलेनरसीपुर के साथ ही बेंगलूरु ग्रामीण के सात्तनूर (अब कनकपुर) से चुनाव में किस्मत आजमाया था। होलेनरसीपुर में अपने पुराने मित्र जी पुट्टस्वामी गौड़ा के बागी बनकर मैदान आ जाने के कारण देवेगौड़ा ने सात्तनूर से भी चुनाव लड़ा था। देवेगौड़ा दोनों सीटों से जीते थे। हालांकि, 1989 में हुए अगले चुनाव में देवेगौड़ा दोनों क्षेत्रों से हार गए। होलेनरसीपुर में पुट्टस्वामी गौड़ा ने देवेगौड़ा को हराया तो सात्तनूर में पी जी आर सिंधिया ने। इसके बाद वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर देवेगौड़ा ने दो क्षेत्रों- हासन के साथ ही कनकपुर से किस्मत आजमाया। हासन से देवेगौड़ा जीत गए लेकिन कनकनपुर में पत्रकार से नेता बनी तेजस्विनी रमेश गौड़ा ने देवेगौड़ा को हरा दिया। वर्ष 2004 के विधानसभा चुनाव में भी पूर्व मुख्यमंत्री एस बंगारप्पा भी दो सीटों से लड़े थे। शिवमोग्गा जिले की शिकारीपुर से भाजपा नेता बी एस येड्डियूरप्पा से बंगारप्पा हार गए तो इसी जिले की अपनी परंपरागत सीट सोरब से जीते थे। इस बार पूर्व मुख्यमंत्री व जद (ध) के प्रदेश अध्यक्ष एच डी कुमारस्वामी भी दो जगहों से चुनाव लडऩे की घोषणा कर चुके हैं। कुमारस्वामी अपनी मौजूदा सीट रामनगर के साथ ही चन्नपट्टणा से भी चुनाव में उतरेंगे।
हालांकि, राज्य में दो सीटों से चुनाव लडऩे की परिपाटी कम रही है। पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा एक साथ दो सीटों से चुनाव लडऩे वाले पहले नेता थे। देवेगौड़ा ने 1985 के विधानसभा चुनाव में हासन जिले की परंपरागत होलेनरसीपुर के साथ ही बेंगलूरु ग्रामीण के सात्तनूर (अब कनकपुर) से चुनाव में किस्मत आजमाया था। होलेनरसीपुर में अपने पुराने मित्र जी पुट्टस्वामी गौड़ा के बागी बनकर मैदान आ जाने के कारण देवेगौड़ा ने सात्तनूर से भी चुनाव लड़ा था। देवेगौड़ा दोनों सीटों से जीते थे। हालांकि, 1989 में हुए अगले चुनाव में देवेगौड़ा दोनों क्षेत्रों से हार गए। होलेनरसीपुर में पुट्टस्वामी गौड़ा ने देवेगौड़ा को हराया तो सात्तनूर में पी जी आर सिंधिया ने। इसके बाद वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर देवेगौड़ा ने दो क्षेत्रों- हासन के साथ ही कनकपुर से किस्मत आजमाया। हासन से देवेगौड़ा जीत गए लेकिन कनकनपुर में पत्रकार से नेता बनी तेजस्विनी रमेश गौड़ा ने देवेगौड़ा को हरा दिया। वर्ष 2004 के विधानसभा चुनाव में भी पूर्व मुख्यमंत्री एस बंगारप्पा भी दो सीटों से लड़े थे। शिवमोग्गा जिले की शिकारीपुर से भाजपा नेता बी एस येड्डियूरप्पा से बंगारप्पा हार गए तो इसी जिले की अपनी परंपरागत सीट सोरब से जीते थे। इस बार पूर्व मुख्यमंत्री व जद (ध) के प्रदेश अध्यक्ष एच डी कुमारस्वामी भी दो जगहों से चुनाव लडऩे की घोषणा कर चुके हैं। कुमारस्वामी अपनी मौजूदा सीट रामनगर के साथ ही चन्नपट्टणा से भी चुनाव में उतरेंगे।